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प्रवचन-२६ चूँकि कोशा राजमान्य नृत्यांगना थी। कोशा का राज्य के साथ संबंध था । स्थूलभद्रजी गये नंदराजा की राजसभा में, राजा को नमन कर, औचित्य का पालन करते हुए खड़े रहे | राजा क्षणभर युवान स्थूलभद्र के तेजस्वी, मनोहर और सप्रमाण सुन्दर देह को देखता रहा....और कहा : 'तुम्हारे पिताजी का देहावसान हो गया है, इसलिए यह मंत्रीपद तुम्हें स्वीकार करना है।' राजा ने मंत्रीपद की मुद्रा स्थूलभद्र के हाथों में रख दी। राजा के पास ही श्रीयक खड़ा था। स्थूलभद्रजी ने श्रीयक के सामने देखा। श्रीयक की आँखें आँसुओं से गीली थीं। मुख पर शोक और उदासीनता थी। श्रीयक ने अपने बड़े भैया की ओर देखा।
स्थूलभद्रजी ने राजा को कहा : 'महाराजा! आपकी हमारे परिवार पर महती कृपा है, मेरे प्रति आपका स्नेह है, आपने मुझे यह मंत्रीमुद्रा दी परन्तु मुझे कुछ समय सोचने देंगे तो आपकी कृपा होगी। मैं इस राजभवन के उद्यान में जाकर शान्ति से, सोचना चाहता हूँ। बिना सोचे ऐसी बड़ी जिम्मेदारी कैसे उठाऊँ?'
राजा ने अनुमति दी और स्थूलभद्रजी उद्यान में चले गये । श्रीयक भी बड़े भाई के साथ उद्यान में गया। अब इस घटना पर हम भी सोचेंगे! किस दृष्टि से स्थूलभद्रजी महामंत्री बनने लायक थे?
राजा ने किस योग्यता पर स्थूलभद्रजी को मंत्रीपद देना चाहा? बारहबारह वर्ष से जो नृत्यांगना के प्रेम में अपने माता-पिता भाई-बहन......वगैरह सभी स्नेही-स्वजनों को भूल गया था, पिता की इज्जत-आबरू का भी जिसने विचार नहीं किया था, राजनीति की शिक्षा भी जिसने नहीं पायी थी,......ऐसे स्थूलभद्र को मगधसाम्राज्य का महामंत्री-पद राजा दे रहा है! कौनसी योग्यता थी? एक ही-खानदानी! कुलीनता! महामंत्री शकटाल खानदानी थे, कुलीन थे, राज्य के वफादार थे, तो उनके बाद महामंत्री पद उनके पुत्र को ही देना उचित समझा।
सभा में से : यहाँ दो प्रश्न उपस्थित होते हैं : पहला प्रश्न तो यह है कि राजा को शकटाल मंत्री की वफादारी में शंका पैदा हो गई थी, इसलिए तो शकटाल ने स्वयं अपने पुत्र के हाथ अपनी हत्या करवाई थी तो राजा को महामंत्री की खानदानी पर तो अविश्वास हो गया था न? दूसरा प्रश्न यह है कि महामंत्रीपद स्थूलभद्र को देना तो अनुचित ही था, बिना योग्यता ऐसा पद
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