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प्रवचन-४४
२३९ वास्तव में यह सच्चा मार्ग है प्रसन्नतापूर्ण जीवन जीने का | मनुष्य ज्यों-ज्यों भौतिक-वैषयिक सुख के साधन बढ़ाता जाता है, उसकी मनःशान्ति नष्ट होती जाती है। उसके पवित्र विचार नष्ट होते जाते हैं। वह अनेक उलझनों में फँसता जाता है। चिन्ता, सन्ताप और उद्वेग से वह भर जाता है। कोई नहीं बचा सकता ऐसे लोगों को। यदि आप लोग समझ जाओ और दुर्व्यय बंद कर दो संपत्ति का, तो बच जाओगे अनेक अनिष्टों से। तब तुम महसूस करोगे....
'तन-मन और धन का अपव्यय नहीं करना चाहिए, इस सत्य को स्वीकार कर लो, तभी आप शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा करोगे । आपका भी आदर्श बनेगा कि 'मुझे अपव्यय से बचना है।' कभी आप दुर्व्यय कर दोगे अथवा परिवार के लोग अपव्यय कर देंगे, तो आपको बुरा लगेगा | मैंने अच्छा नहीं किया, फालतू खर्च कर दिया....।' अफसोस होगा। __ 'मोर्डन' बनने का मोह छोड़ दो। दुनिया का अन्ध अनुकरण छोड़ दो। 'सिनेमा' के पर्दे पर जो कुछ देखते हो, उसका अनुकरण करना छोड़ दो।
और, यदि महिलाएँ यह बात मान जायें, उनके हृदय में यह बात अँच जाये तो आपके परिवारों में बहुत अच्छा परिवर्तन आ जाय । लक्ष्मी का दुर्व्यय रुक जाये। सज्जनों का 'दुर्व्यय त्याग' आपको आकर्षित करता रहेगा। __शिष्टचरित प्रशंसनम' के विषय में विस्तृत विवेचन इसलिए कर रहा हूँ चूंकि आपको शिष्ट-सज्जन बनाना है! सज्जनों की जीवन पद्धति का परिचय इसलिए करा रहा हूँ, चूंकि आप वैसी जीवन पद्धति को पसंद करें, वैसे जीवन के प्रशंसक बनें। शिष्ट पुरुषों के चरित्र की दूसरी विशिष्ट बातें आगे करूँगा। आज, बस इतना ही,
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