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प्रवचन-२६ मात्र गृहस्थ बने रहना पर्याप्त नहीं है, सद्गृहस्थ बनना अनिवार्य है। सद्गृहस्थ ही जैन बन सकता है और जो जैन होता है वही श्रावक बन सकता है। मेरे कहने का मतलब समझे न आप? आप गृहस्थ तो हैं ही, अब सद्गृहस्थ बनो, फिर जैन बनो, बाद में श्रावक और उसके पश्चात् साधु बनना! बिना तमन्ना के गुणवान नहीं बन सकते :
आपके जीवन में 'सत' का प्रवेश होगा तभी आप सदगृहस्थ बनेंगे। 'सत' क्या है, जानते हो? 'सत्' को जाने बिना पाने का पुरुषार्थ कैसे होगा? यह 'सत्' एक नहीं है, पैंतीस प्रकार के 'सत्' हैं। 'सत्' का अर्थ है गुण | सद्गृहस्थ बनने के लिए ३५ गुण प्राप्त करने होंगे गुणवान बनना पड़ेगा। गुणवान बनने की तमन्ना होगी तो ही गुणवान बन पाओगे। तमन्ना के बिना भी भाग्योदय से धनवान बन सकते हो, ताकतवान बन सकते हो, परन्तु तमन्ना के बिना गुणवान नहीं बन सकते। है न तमन्ना गुणवान बनने की? ___ सभा में से : हम लोगों की तमन्ना तो धनवान बनने की है। धनवान बनने के लिए दिनरात तड़पते हैं।
महाराजश्री : धनवान तड़पने से नहीं बना जाता। तड़पन चाहिए गुणवान बनने की। आप धनवान किसलिए बनना चाहते हो?
सुखी बनने के लिए न? आपकी यह मान्यता बन गई है कि 'धन के बिना सुख नहीं।' परन्तु धनवानों से पूछो कि वे सुखी बने हैं क्या? क्या धन बढ़ने के साथ सुख बढ़ा है? गुणहीन धनवान कभी भी सुखशान्ति नहीं पा सकता है। मैंने अनेक दुःखी धनवानों को देखा है। उनके पास धनदौलत ढेर सारी है, परन्तु सुख नहीं है, शान्ति नहीं है। स्वस्थता नहीं है, प्रसन्नता नहीं है और धीरता नहीं है। क्या काम का वह धन? क्या काम की वह दौलत? बुद्धिमत्ता गुणवान बनने में है :
दुःखी श्रीमंत होने के बजाय सुखी गरीब होना ज्यादा अच्छा है। अमीरी गरीबी महत्व की बात नहीं है, दुःख और सुख महत्व के हैं। गुणवान मनुष्य घास की झोपडी में भी सुखी होगा, प्रसन्न होगा । गुणहीन मनुष्य बड़े बंगले में भी दुःखी होगा। सद्गृहस्थ गरीब हो सकता है, दुःखी नहीं हो सकता। भगवान महावीर के समय में ऐसा एक सद्गृहस्थ हो गया। उसका नाम था पुणिया। छोटा-सा घर था और पति-पत्नी मजे से रहते थे। दो जनों की
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