________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१११
प्रवचन-३४
४. वेष की समानता,
५. भाषा की समानता। कुल की समानता :
पहली समानता देखनी चाहिए कुल की। कुल कहो या वंश कहो, उसकी समानता होनी चाहिए। जो कुल पुरुष का हो, वही कुल स्त्री का होना चाहिए। अपने देश में अनेक प्रकार के कुल, अनेक प्रकार के वंश चले आ रहे हैं। प्राचीनकाल में उग्रकुल, राजन्यकुल, क्षत्रियकुल, भोगकुल जैसे अनेक कुल अस्तित्व में थे। वैसे सूर्यवंश, चंद्रवंश जैसे वंशो का भी अस्तित्व था। आज शायद आपको खयाल नहीं होगा कि आप कौन-से कुल-वंश के हैं! राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे प्रदेशों में ओसवाल, पोरवाल, श्रीमाल जैसे वंश देखे जाते हैं। कोई कहता है 'हम ओसवाल वंश के हैं, कोई कहता है 'हम पोरवाल वंश के हैं'.... कोई कहता है 'हम श्रीमाल हैं!'
कोई कुल-वंश उच्च गिने जाते थे, कोई कुल-वंश नीच गिने जाते थे। समाज में कुल-वंश की उच्चता-नीचता की कल्पनाएँ मान्य थी और कुल-वंश के माध्यम से व्यक्तित्व मापा जाता था। वहाँ कुल की समानता देखकर शादीविवाह करना समुचित था। आज भी जहाँ, जिस प्रदेश में कुल-वंश या वंशपरंपरागत खानदानी के माध्यम से मनुष्य की उच्चता-नीचता की कल्पना प्रचलित हों वहाँ कुल-वंश की समानता देखकर ही शादी करनी चाहिए।
एक गाँव में एक वणिक परिवार का दो या तीन पीढ़ी से राजघराने के साथ संबंध था। उस परिवार के पिता....पितामह राजा के मंत्री रहे हुए थे। यह परिवार आज भी अपने को उच्च परिवार मानता है, जब कि राजा चले गये और मंत्रीपद भी चला गया! उस परिवार का लड़का कॉलेज में पढ़ता था, वहाँ किसी लड़की से परिचय हुआ, परिचय से प्रेम हुआ और शादी कर लेने का निर्णय कर लिया। लड़की भी थी वणिक परिवार की, परन्तु वह परिवार आर्थिक दृष्टि से मध्यम कक्षा का था, श्रीमंत नहीं था और उसकी वंशपरंपरा में कोई पूर्वज सत्ता के सिंहासन पर बैठा हुआ नहीं था। परन्तु लड़का तो लड़की को देखता था, उसको लड़की पसन्द थी, उसने अपने माता-पिता को बात बता दी। माता-पिता ने पहले तो मना कर दिया। परन्तु लड़के का दृढ़ निर्णय देखकर सम्मति दे दी। शादी हो गई। लड़की ससुराल में आ गई।
आठ-दस दिन बीते होंगे और सास के उद्गार निकलने लगे : 'देखो बहू,
For Private And Personal Use Only