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प्रवचन-३३
जब भगवान ऋषभदेव हुए उस समय एक दुर्घटना हुई। एक युगल में से पुरुष मर गया, स्त्री जिंदा रह गई। लोगों ने सोचा कि 'इस स्त्री का क्या किया जाय?' वे उस लड़की को लेकर भगवान ऋषभदेव के पिताजी नाभिकुलकर के पास गये। नाभिकुलकर को बात बतायी। उन्होंने कहा कि उस लड़की की शादी ऋषभ से कर दी जाय | और लड़की की शादी ऋषभकुमार से कर दी गई! इस प्रकार इस भारत में सर्व प्रथम शादी रचायी गई और पुरुष को दो पत्नी भी प्रथम बार ही हुई। भगवान ऋषभदेव की दो पत्नियाँ थीं - सुनन्दा और सुमंगला | युगलिक पुरुषों को एक ही पत्नी होती थी। शादी क्यों? :
एक बात मत भूलना कि मानवजीवन धर्मपुरुषार्थ के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने के लिए है। इस धर्मपुरुषार्थ में कषायों की उपशान्ति और जातीय वासनाओं की उपशान्ति अत्यन्त आवश्यक मानी गई है। यदि आप अपनी मैथुन की वासना पर पूर्ण संयम नहीं रख पाते हैं तो ही आपको शादी का, विवाह का मार्ग लेने का है। विवाह से संबद्ध व्यक्ति के साथ विवेक से आप अपनी वासना की आग शान्त कर सकते हो और चित्त-वृत्तियों को स्थिर रख सकते हो। विवाहित स्त्री के अलावा दूसरी किसी भी स्त्री के प्रति रागदृष्टि से देखने का भी नहीं। विवाहित पुरुष के अलावा दूसरे किसी भी पुरुष के प्रति मोहदृष्टि से देखने का भी नहीं। क्योंकि आपको करना है धर्मपुरुषार्थ! उद्दीप्त वासना आपको धर्मध्यान में और धर्मक्रिया में स्थिर नहीं बनने देती है; अस्थिरता, चंचलता पैदा करती है; इसलिए उस वासना को शान्त करना आवश्यक होता है। तप-त्याग से और ज्ञान-ध्यान से उस मैथुन की वासना को आप शान्त नहीं कर पाते हैं तो भोग-संभोग से भी उस वासना को शान्त-उपशान्त करके आपको धर्मपुरुषार्थ में तल्लीन बनना है। उदीप्त वासनाएँ धर्मपुरुषार्थ में बाधक :
कोई भी इन्द्रिय, जब तक अपने विषयों के प्रति आकर्षित है, जब तक मनोवृत्तियाँ वैषयिक सुखों में रमती हैं तब तक धर्मपुरुषार्थ नहीं हो सकता है। इसमें भी क्षुधा और भोगेच्छा-ये दो जब उद्दीप्त होते हैं तब तो तन-मन धर्मआराधना में संलग्न हो ही नहीं सकते। अत्यन्त क्षुधातुर मनुष्य, यदि वह महामुनि या महात्मा नहीं है तो भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक नहीं कर सकता। वैसे अत्यन्त कामातुर मनुष्य गम्य-अगम्य का विवेक नहीं कर सकता। अत्यन्त
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