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प्रवचन- ३२
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विजातीय आकर्षण Attraction of Opposite Sex की समस्या आदि अनादि से परेशान कर रही है हर एक जीव को ! * दुन्यवो तमाम पुरुषार्थों का एक ही लक्ष्य हो जाता है कि
पाँच इंद्रियों के विषयसुख प्राप्त करना !
नरकगति में जीवात्मा को मैथुन-वासना सुषुप्त रहती है, क्योंकि वहां पर मानसिक-शारीरिक वेदना हो असहनीय होती है ।
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● 'मैं किसी के लिए कुछ कर रहा हूँ' इस तरह के कर्तृत्व के अभिमान में कभी भी खिंच मत जाना |
सबसे पहले शादी व्यवस्था भगवान ऋषभदेव के समय में अस्तित्त्व में आई है।
शादी में भी एक दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी बने रहने का आदर्श जीवंत रखना होगा।
एक दूसरे के लिए परस्पर विश्वास, सहनशीलता, उदारता और गंभीरता का स्वीकार होना जरूरी है।
प्रवचन : ३३
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महान श्रुतधर, पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रंथ गृहस्थ जीवन का सामान्य धर्म बताया है । इसी ग्रन्थ में आगे गृहस्थ जीवन का विशेष धर्म और साधुधर्म भी बताया है। इस समय यहाँ गृहस्थ के सामान्य धर्म का विवेचन हो रहा है।
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गृहस्थ जीवन पैसे के बिना नहीं चल सकता, इसलिए अर्थप्राप्ति का पुरुषार्थ करना अनिवार्य होता है । वह अर्थपुरुषार्थ किस प्रकार करना चाहिए, इस विषय पर विस्तार से आपको समझाया है। आज से अपन गृहस्थ जीवन के कामपुरुषार्थ पर विवेचन प्रारम्भ करेंगे।
कामवासना : मनुष्य में साहजिक :
मनुष्य धन इसलिए कमाता है कि वह पाँच इंद्रियों के विषयसुख प्राप्त कर सके और भोग-उपभोग कर सके । वैषयिक सुखों को भोगना ही कामपुरुषार्थ कहलाता है।