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प्रवचन-६
७३ नहीं मिलती। जो अपने अंतरंग राग-द्वेष आदि दोषों का समूल नाश कर देते हैं, उनको अपने पूर्ण ज्ञान में जो द्रव्य जैसा दिखता है, वैसा ही बता देते हैं, जो वस्तु जैसी दिखती है, वैसी ही बता देते हैं। गलत तो तब बताएँ जबकि किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति उन्हें राग हो या द्वेष हो। हम कोई भी बात गलत तब बताते हैं, जबकि हमारे पास पदार्थ को देखने का-जानने का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है अथवा किसी के प्रति राग अथवा द्वेष होता है।
जैसे कि आपके पास स्वर्णहार है। कुछ वर्ष पूर्व आपने उस हार को कहाँ रख दिया है। आप भूल गये हैं कि आपके पास हार है। आज आपका मित्र आकर पूछता है 'तेरे पास स्वर्णहार है? दो दिन के लिए मुझे चाहिए।' आप क्या कहेंगे? 'मेरे पास स्वर्णहार नहीं है। आपके पास स्वर्णहार है, परन्तु 'है' ऐसा ज्ञान नहीं है। इसलिए आपने बात गलत बताई। वैसे आपके पास हीरे का हार है, आपको ज्ञान नहीं कि ये हीरे सच्चे हैं या 'इमिटेशन'! आप हीरे का स्वरूप सही नहीं बता सकेंगे-अज्ञानता होने के कारण! अज्ञान एवं राग-द्वेष असत्य बुलवाते हैं : __ आपके पास स्वर्णहार है, आपको ज्ञान है कि 'मेरे पास स्वर्णहार है, परन्तु स्वर्णहार पर आपको राग है! राग है इसलिए आप किसी को भी देना नहीं चाहते । आपके मित्र ने स्वर्णहार माँगा, आप क्या कहेंगे? 'अभी मेरे पास नहीं है' अथवा टूट गया है या कोई ले गया है, ऐसा ही कहोगे न? क्यों? राग है! राग झूठ बुलवाता है। वैसे, हार पर इतना राग नहीं है, परन्तु जो व्यक्ति माँगने आया है, उस पर द्वेष है। उसको आप नहीं चाहते, तो भी गलत बात करेंगे! तात्पर्य क्या है?
अज्ञान, राग और द्वेष से मनुष्य गलत बात बताता है, झूठ बोलता है। इसलिए अज्ञानी और रागी-द्वेषी मनुष्य की बात पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता है। भरोसा किया, तो धोखा होगा, दगा होगा। धर्मस्थापना कौन कर सकता है? __'धर्म' तत्त्व इतना महान है, उसका कोई मूल्य नहीं। सोना, जौहरात, रेडियम, प्लेटिनम इत्यादि संसार की अतिमूल्यवान धातुओं से भी धर्म का मूल्य नहीं किया जा सकता। ऐसे अमूल्य 'धर्म' को क्या अज्ञानी और रागीद्वेषी मनुष्य समझ सकता है? और जो स्वयं धर्म को नहीं जानता हो, दूसरों को क्या सही रूप में बता सकता है? हाँ, अज्ञानी और रागी-द्वेषी मनुष्यों के
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