________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७१
प्रवचन-५ बिना कारण नहीं होता। यदि अपने को कल्याण प्राप्त करना है, तो धर्म का आलंबन लेना होगा। धर्म से कल्याण-प्राप्ति अवश्य होती है। धर्म ज्वाला है, अनन्त-अपार कर्मवन को जला देता है। धर्म सिद्धिगति-मोक्ष को दिलाता है। कितना अद्भुत प्रभाव बताया है धर्म का? कितना वास्तविक प्रतिपादन किया है ज्ञानीपुरुष ने!' __ परन्तु यह सब किस धर्म से हो सकता है? उस धर्म का स्वरूप क्या है? दुनिया में अनेक प्रकार के धर्म हैं, क्या उन सब धर्मों से ये सारे प्रभाव पैदा हो सकते हैं? अपनी कल्पना में जो आया, उस धर्म को करने से ये सब प्रभाव अनुभव में आ सकते हैं? ये सारी बातें हमें ध्यान से सोचनी पड़ेंगी। ग्रन्थकार महर्षि इसलिए अब धर्म का स्वरूप समझायेंगे। धर्म का प्रभाव बताने के पश्चात्, जब जीव धर्माभिमुख होता है, धर्म-पुरुषार्थ करने के लिए तत्पर होता है, तब धर्म का स्वरूप समझाना आवश्यक होता है। अब आगे धर्म का स्वरूप समझाया जाएगा।
आज, बस इतना ही।
For Private And Personal Use Only