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प्रवचन -४
ने अपनी जिद नहीं छोड़ी, तो परिणाम क्या आया ? राक्षसकुल का कैसा
विनाश हुआ ?
साध्वी प्रियदर्शना जो जमाली मुनि का पक्ष लेकर चली गई थी, उसकी भी जिद तो थी ही। परन्तु एक प्रज्ञावंत महाश्रावक ढंक कुम्हार ने जब प्रयोगात्मक ढंग से प्रियदर्शना को 'कडेमाणे कडे' का सिद्धान्त समझाया, तो प्रियदर्शना समझ गई, जिद छूट गई और भगवान के चरणों में वापस लौट आई। सत्य समझने के पश्चात् भी असत्य की जिद नहीं छूटती है तो परिणाम अच्छा नहीं आता है। नारदजी ने जिद कर ली थी उस सेठ को वैकुंठ में ले आने की ! देखना, परिणाम क्या आता है ?
कहनेवाले कौन हैं ? धर्म की महिमा बतानेवाले कौन हैं? यह सोच लो । पापों की जिद छोड़कर धर्म के मार्ग पर चलो। धर्म पर पूर्ण विश्वास स्थापित करो। धर्म बतानेवाले भवतारक तीर्थंकर परमात्मा हैं। धर्म का प्रभाव बतानेवाले करुणावंत अरिहंत परमात्मा हैं । पापों का आग्रह छोड़ना चाहिए । पापों से मुक्त होने का आग्रह लक्ष्य बन जाना चाहिए । 'मुझे पापमुक्त होना ही है', ऐसा संकल्प हो जाना चाहिए । धर्म पापमुक्त करता है जीवों को । पापमुक्त होने के लिए धर्म की शरण लेनी ही पड़ेगी । कहिए, होना है पापमुक्त ? पाना है मुक्ति ? पापों से मुक्ति पाने की अभिलाषा नहीं, पुरुषार्थ नहीं और चाहिए आपको सिद्धशिलावाली मुक्ति? कैसे मिलेगी वह मुक्ति ?
सेठ मर कर बिल्ला हो गये :
जीवराज सेठ को मुक्ति से बचना था ! इसलिए बना रहा था युक्ति और प्रयुक्ति! एक साल के बाद जब नारदजी जीवराज की दुकान पर गये तो गद्दी खाली थी! गद्दी पर सेठ नहीं थे। दुकान के भीतर सेठ का लड़का बैठा था, उसने नारदजी को देखा । नारदजी ने लड़के से पूछा : 'भाई, सेठजी कहाँ हैं ? लड़के ने कहा : 'वह तो पिछले साल स्वर्गवासी हो गए।'
'अरे! सेठ स्वर्गवासी हो गए ? मर गए?' नारदजी चिंता के सागर में डूब गए। किस बात की चिंता हुई नारदजी को, समझे? सेठ मर गया, इस बात की चिंता नहीं हुई थी, परन्तु अब मैं सेठ को वैकुंठ में नहीं ले जाऊँगा तो भगवान के आगे मेरी इज्जत क्या बचेगी? इस बात की चिंता हुई ! नारदजी ने सोचा : सेठ तो मर गया, परन्तु मर कर वह कहाँ पैदा हुआ होगा ? कहीं न कहीं पैदा तो हुआ ही होगा। वहाँ जाकर सेठ को पकहूँ और ले जाऊँ
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