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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४ ४७ वैकुंठ में! भगवान से झगड़ा कर आपके लिए एक कमरा रिजर्व करवा कर, भगवान का विमान लेकर आया हूँ आपको लेने के लिए!' __ 'देवर्षि, आप कितने करुणावंत हैं। मेरे जैसे अभागे के लिए आपने कितना कष्ट उठाया प्रभु? आप दयालु हैं, परहितकारी हैं। आपका उपकार मैं कभी नहीं भूलूँगा...।' सेठ ने गद्-गद् स्वर में नारदजी की प्रशंसा की और नारदजी के चरणों में साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया। __नारदजी ने कहा : 'जीवराज, अब अपने को चलना चाहिए, भगवान अपना इन्तजार करते होंगे।' __ 'भगवन! वैकुंठ में चलने की मेरी आकंठ इच्छा है | मुझे संसार में कोई रस नहीं, आसक्ति नहीं... मुझे तो अब वैकुंठ के सपने आने लगे हैं...' __ 'तुम सच्चे भक्त हो जीवराज, इसलिए तो मैं तुम्हें लेने आया हूँ। अब चलें अपने।' _ 'महात्मन! जब आप यहाँ पहली बार पधारे और वैकुंठ में मुझे ले जाने की बात की थी, तब मुझे अपूर्व आनन्द हुआ था। मैंने घर जाकर उसी समय लड़के की माँ को कह दिया था कि 'अब मैं संसार में नहीं रहूँगा, मैं वैकुंठ में चला जाऊँगा, नारदजी मुझे लेने आयेंगे!' मेरी बात सुनकर लड़के की माँ रो पड़ी। उसने कहा : आपको वैकुंठ में जाना है तो जाइए, परन्तु लड़के की शादी करके जाइए | अब आपकी वृद्धावस्था है, आपको मैं वैकुंठ में जाने से कैसे रोकूँ? यह तो शादी का समय नजदीक है-माघ महीने का मुहूर्त है, शादी करवाकर आप वैकुंठ पधारें।' 'आपने क्या कहा?' नारदजी ने पूछा। _ 'मैंने कहा कि लड़के की शादी करना है तो वह करेगा, मेरा मन क्षणभर भी संसार में नहीं लगता है, मुझे तो वैकुंठ में जाने की तीव्र इच्छा है।' मेरी बात सुनकर लड़के की माँ को गुस्सा आ गया और क्या बताऊँ आपको। वह ऐसा बोलने लगी कि मुझे बड़ा दुःख हुआ | प्रभो, औरत की जात! आपको भी गालियाँ बकने लगी, तो मैंने कहा : 'अच्छा बाबा, मैं लड़के की शादी करवा कर वैकुंठ जाऊँगा...। तब जाकर वह शान्त हुई। भगवन्त, मैं आपकी निन्दा कैसे सुन सकता हूँ? मैं तो अभी चल दूं आपके साथ, परन्तु लोग आपको गालियाँ देंगे...' नारदजी सेठ की बात सुनकर विचार में पड़ गये। उन्होंने कहा : 'तो सेठ अब क्या करना है?' For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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