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प्रवचन-२४
३२२ तेरी सज्जनता समता में है। समता से मनुष्य सज्जन कहलाता है। शत्रुता से मनुष्य दुर्जन कहलाता है।' ____ मैत्रीभावना को इस प्रकार हृदय में स्थिर करने का प्रयत्न करते रहो। करुणाभावना :
सारे गुणों का उद्भवस्थान है कोमल हृदय | हृदय की कोमलता में से ही गुणों का आविर्भाव होता है। इन गुणों में करुणा श्रेष्ठ गुण है। दूसरे जीवों के दुःख जानकर या देखकर, उन दुःखों को दूर करने की प्रबल इच्छा-करुणा है। आप लोग अपने दुःखों को दूर करना चाहते हो, या दूसरों को?
सभा में से : हम लोग तो हमारे ही दुःखों को रोते हैं।
महाराजश्री : तो फिर धर्मतत्त्व का आत्मा को स्पर्श होना संभव नहीं है। दुःखी जीवों के प्रति अत्यंत करुणा के बिना-धर्मआराधना की योग्यता ही पैदा नहीं होती। धर्म-आराधना करने की योग्यता अपेक्षित है। योग्यता के बिना की हुई धर्म-आराधना आत्मशुद्धि नहीं कर सकती। आत्मा महात्मा नहीं बन सकती। आत्मा के गुणों की उत्पत्ति या गुणों की उन्नति नहीं हो सकती। जिस मानवहृदय में करुणा नहीं होती है, उस मानवहृदय में क्रूरता होती है। क्रूर हृदय में धर्म का प्रवेश नहीं हो सकता। कोई हिंसा करता है, जीवों की कत्ल करता है, वोही क्रूर है, ऐसा नहीं है, आप दूसरे जीवों के दुःख देखने पर भी, जानने पर भी दुःखी नहीं होते हैं, तो आप भी क्रूर हैं। क्रूर मनुष्यों को धर्मक्षेत्र में प्रवेश नहीं मिल सकता!
सभा में से : हम लोगों का तो प्रवेश हो गया है!
महाराजश्री : अनधिकृत प्रवेश हो गया है! अधिकारयुक्त प्रवेश नहीं हुआ है। क्या कहूँ आप लोगों को? परमात्मा जिनेश्वरदेव के धर्म को लजाओ मत । जैन ही नहीं, आर्य भी नहीं कहला सकते । दया और करुणा के बिना आर्यत्व नहीं, जैनत्व नहीं। आर्य और जैन तो दूसरे जीवों के दुःखों से दुःखी होता है। दुःख दूर करने की तीव्र भावना और भरसक प्रयत्न करनेवाला होता है। दुःखी भी दो प्रकार से : ___ संसार में दुःखी जीव दो प्रकार के होते हैं : द्रव्यदुःखी और भावदुःखी । जिनके पास पुण्योदय नहीं है वे द्रव्यदुःखी हैं, जिनके पास मोहनीय कर्म का क्षयोपशम नहीं है, वे भावदुःखी हैं। समझे इस बात को? समझ लो, अच्छी तरह समझ लो इस बात को।
पुण्यकर्म के ४२ प्रकार हैं। सारे के सारे भौतिक सुख, इन ४२ प्रकार के
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