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प्रवचन-२०
२६२ हुई वासनामात्र होती है, दूसरा कुछ नहीं। ज्ञानी और विवेकी मनुष्य ही गुणों के माध्यम से जीवों के साथ प्रेम कर सकता है।
सभा में से : हम लोग तो दुनिया में पैसे के माध्यम से प्रेम करना जानते हैं! हमारे मन में जितना मूल्यांकन पैसे का, रूपये का है, उतना गुणों का नहीं है! फिर गुणवान व्यक्ति के प्रति प्रेम कैसे होगा?
महाराजश्री : इसलिए तो कहता हूँ कि दृष्टि बदलो। धनवान् प्यारा लगता है आपको, चूंकि आपको धन प्यारा है! आपने धन का मूल्यांकन किया है। आप क्षमा, नम्रता, वैराग्य, परमार्थ, परोपकार इत्यादि गुणों का मूल्यांकन करते रहो, आपको गुणवान मनुष्य के प्रति प्रेम होगा ही अर्थात् उनके प्रति सद्भाव, उनके गुणों की अनुमोदना, गुणानुवाद आप करोगे ही। रूप और रूपये से ही प्यार है!
सभा में से : ये पुराने लोग जो हैं वो तो धन से प्रेम करते हैं और युवक जो हैं, रूप से प्रेम करते हैं। आजकल सारी दुनिया में धन और रूप का प्रेम निःसीम बढ़ता जा रहा है! __ महाराजश्री : इससे विपरीत अमरीका जैसे देशों में धन और रूप का प्रेम क्षीण होने लगा है! धन और रूप का त्याग कर हजारों स्त्री-पुरुष आजकल भारत में आ रहे हैं! धन और रूप क्षणिक सुख दे सकते हैं, परन्तु मनुष्य को आन्तरिक शान्ति नहीं दे सकते, आन्तरिक आनन्द नहीं दे सकते । आन्तरिक शांति के बिना जीवन कितना बोझिल बन जाता है, जीवन कितना असह्य बन जाता है, उन अमरिकनों से पूछो। ठीक है, आप धन और रूप का उपभोग किए बिना नहीं रह सकते, परन्तु आप उससे लगाव मत रखो। आप धन और रूप को जीवन के अभिन्न अंग मत समझो। 'धन और रूप के बिना भी आनन्दपूर्ण जीवन व्यतीत हो सकता है, ऐसा मान कर चलो। धन और रूप के प्रति आपके हृदय में आदर नहीं रहेगा तो गुणों के प्रति, गुणवानों के प्रति आदर पैदा हो जाएगा ही और वह आदर बढ़ता ही चलेगा। गुणमूलक प्रेम ही दीर्घजीवी :
दूसरी बात समझ लो । गुणों के माध्यम से प्रेम होता है, दीर्घजीवी होता है। रूप और धन के माध्यम से जो प्रेम होता है, क्षणजीवी होता है। क्योंकि रूप और धन-दोनों परिवर्तनशील हैं। रूप बदल गया, कुरूप हो गया व्यक्ति, प्रेम
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