________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-१७
२२६ उपार्जन करके अपने आश्रय के प्रति चले जाते देव के प्रति भगवान महावीर की यह भावकरुणा थी।
सभा में से : ऐसी करुणा तो भगवान ही बरसा सकते हैं... हम लोग ऐसी करुणा लायें कहाँ से? दिल में भावकरुणा पैदा करो :
महाराजश्री : ऐसी करुणा नहीं तो कैसी करुणा आप लोग पा सकते हैं? भले आप ऐसी करुणा आज नहीं बरसा सकते, परन्तु ऐसी चाहते तो हो? अपने पर घोर कष्ट बरसानेवालों के प्रति भी "बेचारा, कषायपरवश कैसे चिकने पापकर्म बाँधता है! क्या होगा उसका?' ऐसी भाव-करुणा आज अपने पास नहीं है, परन्तु ऐसी करुणा आत्मा में पैदा हो जाय, यह पसन्द तो है न? अशक्य नहीं है, भावकरुणा अपनी आत्मा में प्रकट हो सकती है। तीव्र चाह होगी तो एक दिन ऐसी करुणा प्रकट होगी ही।
जिस प्रकार निर्धन, भूखे, प्यासे, नंगे, रोगी जीव करुणा के पात्र हैं, वैसे पापाचरण करनेवाले भी करुणा के पात्र हैं। वह करुणा होगी भावात्मक | उस व्यक्ति को हम भले निष्पाप नहीं बना सकते, परन्तु 'इन पापों से यह बेचारा भविष्य में दुःखी होगा'... ऐसा विचार कर सकते हैं। इस विचार से हृदय कोमल बना रहता है। यही धर्म है! __ कभी किसी को पाप करते रोकना है, समझाने से नहीं रुकता है और कुछ शिक्षा भी करनी पड़े, तो वह भी करुणा है! माता-पिता अपनी सन्तानों को अयोग्य आचरण से रोकने के लिए शिक्षा करें, सजा करें, तो वह करुणा ही है। दिखने में करुणा नहीं दिखेगी, परन्तु भाव करुणा हो सकती है। 'यदि इस लड़के को इस बुरे काम से नहीं रोकेंगे तो उसका जीवन बरबाद हो जाएगा, मानव-जीवन व्यर्थ चला जाएगा।' इस भावना से माता-पिता सन्तान को शिक्षा भी करते हैं, तो वह करुणा ही है। इसलिए तो मदनरेखा जो कि साध्वी है, अपने लड़कों को युद्ध से रोकने के लिए युद्ध के मैदान पर गई थी। युद्ध में होनेवाली घोर जीवहिंसा से साध्वीजी का हृदय द्रवित हो गया था । 'ऐसी घोर जीवहिंसा का पाप करके मेरे लड़के मानवजीवन हार जायेंगे। दुर्गति में चले जायेंगे। मैं रोक दूँ उनको...।' यह मोहवासना नहीं थी, करुणा भावना थी।
For Private And Personal Use Only