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प्रवचन-१६
___ २१२ करने के उपायों का सही ज्ञान होना चाहिए। यदि ऐसा ज्ञान नहीं हो तो 'इसका दू:ख दूर हो जाए,' इतनी सद्भावना ही रखनी चाहिए, उपचार नहीं करना चाहिए। करुणा में अन्य के दुःख का विचार :
दुःखी जीवों के प्रति हृदय में अत्यंत करुणा होनी चाहिए। जिस मनुष्य में ऐसी करुणा होती है वह अपने सुख-दुःख का विचार नहीं करता है। अपना सुख देकर भी वह दूसरे का दुःख दूर करने का प्रयत्न करेगा। ऐसा करके वह प्रसन्न होगा! अपना सुख चला गया... ऐसा अफसोस नहीं करेगा। निरालाजी की निराली बात :
हिन्दी भाषा के शीर्षस्थ कवि निरालाजी के जीवन की एक सही घटना मैंने पढ़ी। निरालाजी की करुणाभावना से मैं बड़ा प्रभावित हुआ। सर्दी के दिन थे, निरालाजी सर्दी में ठिठुर रहे थे। हिन्दी भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा ने निरालाजी को ठिठुरते हुए देखा। उनका हृदय भर आया । शीघ्र ही निरालाजी के लिए एक ऊनी कोट सिलवा दिया और निरालाजी को दे दिया । कोट देते समय बड़े प्रेम से महादेवीजी ने निरालाजी से कहा : 'यह कोट आपका नहीं है, मेरा है! __ आपके लिए मैंने सिलवाया है। इसलिए मेरी अनुमति के बिना इसका दूसरा उपयोग मत करना!' |
कुछ ही दिनों बाद निरालाजी महादेवी से दूर-दूर रहने लगे। परन्तु महादेवी ने उनको पकड़ ही लिया! निरालाजी के शरीर पर वह कोट नहीं था, महादेवी ने पूछा : 'वह कोट कहाँ है! आज क्यों नहीं पहना है?' निरालाजी समझ गये! उन्होंने सही बात बता दी : 'थोड़े दिन पहले रास्ते पर एक नंगे भिखारी को देखा, बेचारा सर्दी में ऐसा ठिठुर रहा था कि सारा शरीर सिकोड़ कर एक तरफ सोया था। मुझे लगा कि मुझसे भी कोट की ज्यादा जरूरत इसको है... मैंने कोट उतारकर उसको ओढ़ा दिया!' महादेवीजी की आँखों में हर्ष के आँसू आ गए। अपने सुख का विचार करुणावंत पुरुष को आता हीं नही, वे हमेशा दूसरों के लिए सोचते हैं। महाकवि माघ की घटना :
ऐसी ही घटना है संस्कृत भाषा के मूर्धन्य कवि माघ के जीवन की। भीतर
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