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प्रवचन-१५
१९७ दुष्ट वासना के वश नहीं हुई। दुःखों से डरती नहीं थी इसलिए जंगल में चली गई... अपनी शीलरक्षा के लिए | उसका चित्त कितना विशुद्ध होगा!
दूसरे दिन मदनरेखा चलती ही रही। संध्या के समय एक वृक्ष की घटा में सुरक्षित स्थान पाकर उसने विश्राम कर लिया। दिन में उसने फलाहार कर लिया था और झरनों का पानी पी लिया था। पास में ही एक बड़ा सरोवर था। प्रदेश रमणीय था। निर्जन था। हालाँकि जंगली पशुओं का विचरण अवश्य था, परन्तु मदनरेखा के प्रति उनमें हिंसक-भाव नहीं रहा! दया और करुणा का प्रभाव : ___ मदनरेखा के चरित्रग्रन्थ में यह बात जो लिखी गई है, 'बोगस' नहीं है, मात्र मदनरेखा का प्रभाव बताने के लिए नहीं कही गई है। वास्तविक बात है। जिस मनुष्य का हृदय दया और करुणा से सभर होता है, जिस हृदय में से वैरवृत्ति नामशेष हो गई होती है, उसके पास आनेवाले हिंसक जानवर और हिंसक मनुष्य भी अहिंसक भाववाले बन जाते हैं! उनमें से वैरवृत्ति चली जाती है। महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में कहा है : । ___ 'अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः।' जिस हृदय में अहिंसा की प्रतिष्ठा हो गई, उसके सान्निध्य में आनेवालों के हृदय भी वैरवृत्ति से मुक्त हो जाते हैं! इसलिए तो तीर्थंकर परमात्मा के समवसरण में बाघ और बकरी साथ में बैठते हैं! शेर निर्वैर बनता है, बकरी निर्भय बनती है!
निकट के भूतकाल में ऐसे कुछ योगीपुरुष हो गये, कहते हैं कि उनके पास हिंसक पशु भी पालतू पशु की तरह निर्वैर बन जाते थे! मदनरेखा के हृदय में अहिंसा की प्रतिष्ठा हो गई थी। जीवमात्र के प्रति उसके हृदय में मैत्रीभाव उभर रहा था । 'मित्ति में सव्वभूएसु' सूत्र वास्तविक रूप में मदनरेखा ने आत्मसात किया था।
वृक्षों की घटा में, पर्णशय्या में सोई हुई मदनरेखा ने मध्यरात्रि के समय पुत्र को जन्म दिया। न कोई प्रसव की पीड़ा, न कोई विह्वलता। जब अरुणोदय हुआ, मदनरेखा ने पुत्र को अंगुली से युगबाहु की मुद्रिका बाँध दी और अपने रत्नकंबल में लड़के को लपेटकर सुला दिया । मदनरेखा वस्त्र धोने और स्नान करने सरोवर पर चली गई। प्रभात का समय था । सरोवर का नीर शान्त और शीतल था।
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