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प्रवचन-१३ अथवा युवराज-युवराज्ञी होते उस समय दूसरा कोई नागरिक उद्यान में आवाजाही नहीं कर सकता था। ___ मणिरथ को समाचार मिल गए । 'आज युगबाहु और मदनरेखा कदलीगृह में रात्रि व्यतीत करने गए हैं। दोनों ही हैं।' उसके मन में वह पाप-विचार जाग्रत हो गया। 'आज मौका अच्छा है। आज युगबाहु को मार कर मदनरेखा को मेरी प्रिया बना लँ।' वह रात्रि के प्रथम प्रहर में ही हाथ में तलवार उठाकर उद्यान की ओर चल दिया। उद्यान के द्वार पर युगबाहु के सैनिक खड़े थे। राजा ने पूछा : 'मेरा छोटा भाई युगबाहु कहाँ है?' सैनिकों ने जवाब दिया : 'महाराजा, वे कदलीगृह में सो रहे हैं।' __ राजा ने कहा : 'मुझे समाचार मिले कि वह कदलीगृह में रात व्यतीत करेगा, इसलिए तो मुझे अभी आना पड़ा, जंगल है, कोई शत्रु आकर मेरे भाई पर हमला कर सकता है... इसलिए उसको महल में ले जाने के लिए मैं आया हूँ।' इतना कहकर मणिरथ कदलीगृह में प्रवेश कर गया। सैनिक राजा को कैसे रोक सकते थे! सैनिकों के मन में विचार तो आया होगा कि 'हम सब सैनिक यहाँ खड़े हैं... कोई भी शत्रु आ जाय... आपके भाई को कुछ भी नहीं होगा, उनको सोने दो कदलीगह में... आपको भीतर जाने की जरूरत नहीं है।' लेकिन कहते कैसे! सामने राजा था न! सच्ची और सही बात भी कभी-कभी मर्यादाभंग के भय से कही नहीं जाती है! ऐसा भय किस काम का? ऐसा भय रखने से सत्य दब जाता है और असत्य सफल हो जाता है कभी।
ज्यों मणिरथ ने कदलीगृह में प्रवेश किया, युगबाहु ने देख लिया। बड़े भाई को आये देखकर तुरंत युगबाहु खड़ा हो गया। मणिरथ ने युगबाहु से कहा : 'वत्स, इधर रात में रहना उचित नहीं है | चलो नगर में चलें।' युगबाहु बचपन से मणिरथ का विनय करता आया था । बड़े भाई की आज्ञा का उसने कभी भी उल्लंघन नहीं किया था। बड़े भाई के प्रति कभी शंका की दृष्टि से देखा नहीं था। उनके प्रति पूर्ण विश्वास था। मणिरथ ने नगर में चलने को कहा तब युगबाहु ने मदनरेखा की ओर देखकर नगर में चलने का इशारा कर दिया। युगबाहु ज्यों ही कदलीगृह के बाहर निकलता है, मणिरथ युगबाहु के कन्धे पर जोर से तलवार का वार कर देता है...। मदनरेखा की स्वस्थता :
युगबाहु जमीन पर गिर पड़ा। मदनरेखा के मुँह से तीव्र चीख निकल गई... 'धोखा, दगा हुआ है।' पास में ही खड़े हुए सैनिक चीख सुनकर दौड़
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