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प्रवचन-१२
१५९ से मन भर गया है अथवा तन-मन खिन्न हो गये हैं। पथमिणी ने लीलावती को भी अभय बना दिया। अद्वेषी बना दिया। अखिन्न बना दिया। क्योंकि उसके पास श्री नवकार मंत्र की आराधना करानी है। ऐसी आराधना करानी है कि जिसका प्रभाव अल्प समय में दिखाई दे। दूसरे को धर्म का आराधक कैसे बनाया जाए?
यदि पथमिणी चाहती तो लीलावती को कह देती : 'तुझे अपना कलंक मिटाना है तो नवकार मंत्र का जाप करना। यदि तेरा पुण्योदय होगा तो कलंक मिटेगा और यदि पापोदय होगा तो भोगना पड़ेगा। मेरा कर्तव्य है इसलिए तुझे कहती हूँ। तुझे पसन्द हो वहाँ जाकर नवकार का जाप करना।' इतना उपदेश देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेती तो क्या लीलावती नवकार मंत्र की स्थिर चित्त से आराधना कर सकती थी?
काफी समझने की बात है। दुःखी मनुष्य को मात्र उपदेश देने से धर्मसन्मुख नहीं किया जा सकता है। पहले उससे आप मैत्री करो। उसको भयमुक्त करो। उसके मन को द्वेषरहित करो, उसमें उत्साह जाग्रत करो। फिर आप दुःखी जीवात्मा को धर्म का उपदेश दो। उसके हृदय में उपदेश पहुँचेगा। वह 'यथोदितं' धर्मानुष्ठान करने के लिए शक्तिमान बनेगा।
मयणासुन्दरी ने अपने पति उंबरराणा को कैसे धर्मसन्मुख किया था? श्री सिद्धचक्रजी की 'यथोदितं' आराधना कैसे करवाई थी? जिस प्रकार गुरु महाराज ने सिद्धचक्रजी की आराधना-विधि बताई थी उसी प्रकार उन्होंने आराधना की थी न? कैसे कर पाये थे? मयणासुन्दरी को गुरुदेव ने अभय बनाया था, मयणा ने उंबरराणा को भयरहित किया था! मयणा को गुरुदेव ने द्वेषरहित कीया था, मयणा ने उंबरराणा को द्वेषरहित किया था। मयणा के हृदय में गुरुदेव ने उत्साह प्रेरित किया था, मयणा ने उंबरराणा को उत्साह से भर दिया था। तब वह शान्त चित्त से, एकाग्र मन से सिद्धचक्र की आराधना कर पाये थे और नौवें दिन ही उस आराधना का फल पा लिया था।
आप लोग भी सिद्धचक्र की आराधना करते हो न? कैसे करते हो? ___ सभा में से : हम लोग तो घर-दुकान में और मन्दिर-उपाश्रय में सर्वत्र भय-द्वेष और खेद से भरे हुए ही रहते हैं! ___ महाराजश्री : बस, इसलिए आपका धर्मानुष्ठान 'यथोदितं' नहीं होता है और इसी वजह से धर्म का प्रभाव आप अनुभव नहीं कर सकते हो। निर्भय
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