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प्रवचन-११
१३८ . परमात्मा के साथ नाता रचने की, संबंध बाँधने की चार
भूमिकाएँ हैं : १. स्मरण २. दर्शन ३. स्तवन ४. स्पर्शन। • प्रेमतत्त्व को समझनेवाले ही मूर्ति का, मूर्तिपूजा का रहस्य समझ पायेंगे। परमात्मा का प्रेम स्वतः तुम्हें खींचेगा मंदिर
की तरफ। • यदि आप बंगले में बेडरुम, ड्रोईंगरूम, बाथरुम, किचन रख
सकते हो; तो क्या एक 'गॉडरुम' नहीं बना सकते? • गद्गद् स्वर में और भावविभोर हृदय से भील ने अपनी
आँख भेंट करके भगवान शंकर की पूजा की। . भगवान शंकर ने जटाशंकर से कहा : 'जो मुझे संपूर्ण एवं सर्वस्व समर्पित करते हैं, मैं उनका हो जाता हूँ!' धर्मशालाओं की आज दशा क्या हो रही है? उन्हें पापशाला का रूप दिया जा रहा है!
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प्रवचन : ११
याकिनी महत्तरासुनु महान श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में धर्म का स्वरूप समझाते हुए फरमाते हैं :
वचनाद्यदनुष्ठनुष्ठानमविरूद्धाद् यथोदितं ।
मैत्र्यादिभावसंयुक्तं तद्धर्म इति कीर्त्यते ।। क्या आपके मन में इस बात को लेकर कभी बेचैनी पैदा हुई कि इतने वर्षों से धर्मानुष्ठान करते हुए भी अभी तक विचारशुद्धि और आचारशुद्धि नहीं हुई...तो क्या करूँ? क्या मैं अविधि से धर्मानुष्ठान कर रहा हूँ? जिस प्रकार धर्मानुष्ठान करना चाहिए उस प्रकार नहीं कर रहा हूँ? क्यों आत्मा में प्रशमभाव जाग्रत नहीं होता? कहाँ उलझ गया हूँ? जिंदगी छोटी है। अब जीवन-दीप बुझ जाएगा...पता नहीं, परलोक में आत्मा कहाँ जाएगी? पुनः चौरासी लाख योनि के चक्कर में तो कहीं नहीं फँस जाएगी मेरी आत्मा?
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