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प्रवचन- १०
१३६
परस्त्री के साथ एकांत में राग से बातें भी नहीं करने की । सिनेमा के पर्दे पर भी औरतों की अर्धनग्न काया नहीं देखने की । नहीं जाते हो न देखने को ? वासनाएँ पीछा नहीं छोड़ेंगी :
सभा में से : श्रीमतीजी भी आती हैं सिनेमा देखने ! परपुरुषों को देखती हैं न? महाराजश्री : अच्छा, तो आपस में समझौता कर लिया लगता है कि मैं परस्त्री को देखूँ तो तू बौखलाना मत और तू परपुरुषों के रूप देखेगी तो मैं विरोध नहीं करूँगा। क्यों ऐसी ही बात है न? परन्तु देखने तक का ही समझौता है न? आगे बढ़कर कोई दूसरा समझौता तो नहीं किया है न? क्यों जान-बूझकर नर्क में जाने के कर्म बाँधते हो ? क्यों इस वर्तमान जीवन में दुराचार-व्यभिचार के मार्ग पर चलकर स्वयं की और दूसरों की जिंदगी बर्बाद करते हो? क्या स्वस्त्री में और स्वपुरुष में ही आपकी विषयवासना शान्त नहीं होती? वासना तो दावानल है, विषयसुख भोगने से दावानल शान्त नहीं होता है, बढ़ता है । वासना प्रबल बनती जाती है । जब शरीर अशक्त बन जाएगा, इन्द्रियाँ शिथिल हो जाएँगी, तब वासनाएँ आपको डायन बनकर सताएँगी । पति-पत्नी का सदाचारी जीवन ही अपने आर्यदेश की संस्कृति है । सदाचारी, परस्पर वफादार पति-पत्नी के ही संतान आर्य-संस्कृति के संवाहक और मोक्षमार्ग के आराधक बन सकते हैं। पेथड़शाह और पथमिणी को एक ही सुपुत्र झांझणशाह था । परन्तु कैसा था ? जैसा बाप वैसा बेटा! वैसा ही सुशील, दानवीर और परमात्मभक्त ! गुणवान, श्रद्धावान, चरित्रवान! आपको कैसी संतान चाहिए ? संतानों की चिंता है आपको ? उनकी आत्मा की चिंता है ? आपको अपनी आत्मा की ही चिंता नहीं है, फिर संतानों की तो बात ही क्या करना ?
देश के हितचिंतक कहलानेवालों ने, समाज के उद्धारक कहलानेवालों ने, महिलाओं को सुखी करने का ठेका लेनेवालों ने दुराचार और व्यभिचार को फैलाने का घोर पाप किया है और कर रहे हैं। कुछ ऐसे बाजारू साहित्यकारों ने, कलाकारों ने और श्रीमन्तों ने दुराचार और व्यभिचार का प्रचार करने का अक्षम्य अपराध किया है और कर रहे हैं । अरे, व्यभिचारियों को सुरक्षा देने के कानून बन गए हैं। गर्भपात जैसा घोर पाप कानून के सहारे निर्भयता से हो रहा है। ऐसे कानूनों का पालन करने का ? ऐसे कानूनों का डटकर विरोध करना चाहिए, उल्लंघन करना चाहिए । प्रजा को निःसत्त्व और निर्वीर्य बनानेवाली
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