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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१ प्राचीन काल में लिखा गया है, परन्तु वर्तमानकालीन मनुष्यों के लिए आज भी उतना ही उपयुक्त है। तीन महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ : ___ हाँ, एक बात कह दूँ : आपको नियमित सुनना होगा। दो दिन सुना और दो दिन नहीं सुना, ऐसा मत करना। नियमित सुनने से समग्र विषय का बोध होता है। जिस अर्थ में, जिस सन्दर्भ में मैं बात करूँगा, आपको उसी अर्थ में और उसी सन्दर्भ में बोध होगा। अन्यथा गड़बड़ पैदा हो जायेगी! मैं कहूँगा कुछ, आप समझोगे कुछ! दूसरी बात : जाग्रत रहकर सुनना! सुनते समय इधर-उधर नहीं देखना, ऊपर-नीचे नहीं देखना । कैसे सुनते हो प्रवचन? वक्ता के सामने ही देखना चाहिए। हाँ, नींद आ जाय तो फिर कैसे देखोगे? आसन लगाकर बैठें तो नींद भी नहीं आएगी। आधे जाग्रत और आधे नींद में, फिर क्या पल्ले पड़ेगा? धर्मश्रवण करने का आपका ढंग बदलने की जरूरत है। ___ एक गाँव में एक वृद्धा प्रतिदिन उपाश्रय व्याख्यान सुनने जाया करती थी। वर्षावास रहे हुए गुरुदेव 'भगवती सूत्र' पर नियमित प्रवचन देते थे। भगवती सूत्र में बार-बार भगवान महावीर स्वामी अपने पट्टशिष्य इन्द्रभूति गौतम को 'गोयमा' शब्द से पुकारते हैं। गुरुमहाराज की बोलने की पद्धति भी अच्छी थी। वे 'गोयमा' शब्द जोर से बोलते थे। वह बुढ़िया आधी नींद में और आधी जाग्रत...वैसे ही प्रवचन सुनती थी...कुछ कम सुनती होगी...। एक दिन जब वह बुढ़िया प्रवचन सुनकर घर पहुंची, तो उसकी पुत्रवधू ने पूछा : 'माताजी, आज गुरु महाराज ने प्रवचन में क्या बताया?' बुढ़िया ने कहा : 'महाराज व्याख्यान तो अच्छा देते हैं, परन्तु उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं लगता है...बारबार 'ओयमा' 'ओयमा'... करते थे।' बुढ़िया ने कैसा सुना प्रवचन! 'गोयमा' का 'ओयमा' कर दिया! यदि आप स्वस्थता से प्रवचन नहीं सुनेंगे तो अर्थ का अनर्थ करेंगे। इसीलिए कहता हूँ कि जाग्रत बन कर प्रवचन सुनो। तीसरी बात भी सुन लो : यह बात है खास माताओं के लिए और बहनों के लिए! प्रवचन-सभा में उनकी 'मेजोरिटी' रहती है न! बहनें विशेषरूप से ज्यादा, पुरुष कम। उनसे मुझे कहना है कि वे प्रवचन हॉल में मौन रहकर For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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