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प्रवचन-८ चाहिए। विश्वास होना चाहिए कि 'इस अनुष्ठान से मेरी कार्यसिद्धि अवश्य होगी।' है न विश्वास? कार्यसिद्धि का ध्येय है न? कौन-सा कार्य सिद्ध करना है? सुख पाना है या शुद्धि पाना है? ज्ञानी पुरुषों ने, अनुभवी पुरुषों ने बताया है कि परमात्मपूजन से चित्त की व्याकुलता दूर होती है और अपूर्व प्रसन्नता प्राप्त होती है।
वीतराग के पूजन से राग-द्वेष के तूफान शान्त होते हैं। इससे चित्त प्रसन्न बनता है। कोई भय नहीं, कोई विह्वलता नहीं। बनाना है ऐसा चित्त? होना है निर्भय? परमात्मपूजन से अवश्य यह कार्य हो सकता है। लक्ष्य निश्चित करके धर्मक्रिया करो :
भौतिक सुखों के पीछे पागल मत बनो। इन्द्रियों के विषयसुखों में मत उलझ जाओ। वैषयिक सुखों में तो घोर अशान्ति और संताप ही मिलनेवाला है। वैषयिक सुखों की वासना को वीतराग भक्ति के द्वारा जलाकर भस्म कर दो। लक्ष्य का निर्धारण करना ही होगा। उस लक्ष्य की सिद्धि के लिए जाओ परमात्मा के मन्दिर में। दर्शन-पूजन की विधि के प्रति आदर होगा ही। परमात्मा को अपना परम प्रियतम मानो, उनकी शरण ले लो। अँचती है मेरी बात? यदि मेरी यह बात अँचेगी तो परमात्मपूजन का अनुष्ठान 'धर्म' बन जाएगा। अन्यथा अनुष्ठान मात्र अनुष्ठान ही रहेगा | फालतू क्रिया बनी रहेगी। कोई विशेष लाभ नहीं ऐसी क्रियाओं से।
आप लोग संसार में जगह-जगह विधि का पालन करते हो या नहीं? व्यापार करना है तो 'लायसेन्स' लेते हैं न? 'सेलटैक्स' नंबर लेते हो न? 'इन्कमटैक्स' का 'फॉर्म' भरते हो न? कितनी लंबी-चौड़ी विधि होती है इन सब में? पर आप करते हो! पसंद न भी हो, तो भी करते हो। क्योंकि आपको व्यापार करना है, पैसा कमाना है । लक्ष्य है, ध्येय है, कुछ पाने की प्रबल इच्छा है। इधर धर्म के विषय में भी यही बात है। कुछ पाने की प्रबल इच्छा जाग्रत होने पर विधि के प्रति अनादर, तिरस्कार या अरुचि नहीं रहेगी, परन्तु आदर और अभिरुचि जाग्रत होगी। अनुष्ठान को ठीक रूप से समझ कर यदि करोगे तो समय, आसन, मुद्रा आदि का पालन करोगे ही। परमात्मा की पूजा कब करते हो आप? ___ 'इस अनुष्ठान में कौन-सा समय अपेक्षित है, यह विचार होना चाहिए | 'मुझे परमात्मपूजन करना है, परन्तु मुझे तो सुबह का ही समय मिलता है,
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