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प्रवचन- ७
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मरिचि ने तो असत्य भाषण करके अपनी अधोगति की, परन्तु कपिल को भी गुमराह किया । इसलिए आचार्यदेव कहते हैं कि वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा का वचन ही विश्वसनीय है । वीतराग को असत्य बोलने का कोई प्रयोजन ही नहीं रहता। न होता है राग और न होता है द्वेष ! फिर वे मिथ्याभाषण क्यों करेंगे ?
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धर्मानुष्ठान की पहली शर्त यह है कि वह धर्मानुष्ठान अविरुद्ध शास्त्र के अनुसार होना चाहिए । अविरुद्ध शास्त्र, उसका प्रमाण होना चाहिए। मनःकल्पित अनुष्ठान धर्म नहीं कहलाएगा। जिनप्रणीत शास्त्रों को प्रमाणभूत मानकर, उन शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार आपकी त्याग और स्वीकार की प्रवृत्ति होनी चाहिए ।
धर्मशास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करना ही होगा :
क्यों ये सारी बातें सुनकर स्तब्ध हो गए ? धर्म का प्रभाव सुनकर तो मुँह में पानी आ गया था! धर्म से मिलनेवाले उत्तम फल की बात सुनकर प्रसन्न हो गए थे! अब क्यों ढीले पड़ रहे हो? तो क्या जैसे-तैसे, मनमाने ढंग से आप जो क्रियाएँ करते हो, अनुष्ठान करते हो, उसको धर्म मानते हो? और ऐसे धर्म का फल स्वर्ग और मोक्ष मानते हो ऐसी धर्मशास्त्रनिरक्षेप धर्मक्रियाओं से यह फल नहीं मिल सकता । धर्मशास्त्रों के अनुसार धर्मक्रियाएँ, धर्मानुष्ठान करने होंगे। इसलिए धर्मशास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करना पड़ेगा। इतना ही नहीं, दूसरी बातों को भी ध्यान में लेना पड़ेगा, जो आचार्यदेव इस ग्रन्थ में बता रहे हैं। आप शान्ति से सुनें, इन बातों पर विचार करें और धर्म का स्वरूप अच्छी तरह समझें ।
आज, बस इतना ही ।
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