________________
प्रस्तावना
इस समय भारतीय-दर्शनशास्त्र के ब्राह्मण, बौद्ध और जैन ये मुख्य तीन सम्प्रदाय देखे जाते हैं । यद्यपि चार्वाक दर्शन भी है परन्तु उसका न कोई सम्प्रदाय चलता है और न कोई परम्परा देखने में आती है । सम्भव है कि चार्वाक की परम्परा चली हो परन्तु कालक्रम से लुप्त हो चूकी हो । जो कुछ भी हो, कमसे कम इस समय चार्वाक की परम्परा हमारे सामने नहीं
टिप्पण आदि उपलब्ध नहीं होते हैं।
इस सामान्य स्थिति का अपवाद भी है । वह यह कि कुछ जैन विद्वानों के ब्राह्मण तथा बौद्ध सम्प्रदाय के दार्शनिक ग्रन्थो पर लिखे हुवे टीका टिप्पण आदि उपलब्ध होते हैं । ऐसा क्यों हुआ इसकी विशेष चर्चा यहाँ प्रस्तुत नहीं है।
यद्यपि जैन विद्वानों ने इतर सम्प्रदाय के विविधविषयक साहित्य पर काफी लिखा है परन्तु यहाँ तो हमारा अभिप्राय केवल न्याय-वैशेषिक साहित्य से है। न्याय-वैशेषिक सम्प्रदाय के ग्रन्थों पर जिन जैन विद्वानों की टीका या टिप्पण आदि उपलब्ध होते हैं उन सभी विद्वानों का समय 'कलिकालसर्वज्ञ' उपाधि से ख्यातनामा आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरि के बाद का है । सामान्यतः कालक्रम के अनुसार निम्नलिखित विद्वानों की निम्ननिर्दिष्ट कृतियाँ इस समय भिन्न भिन्न जैन ज्ञानभण्डारों में उपलब्ध होती है। कर्ता नाम
कृतिनाम १. श्रीनरचन्द्रसूरि
न्यायकन्दलीटिप्पण २. श्रीअभयतिलकोपाध्याय
न्यायालङ्कारटिप्पण ३. श्रीराजशेखरसूरि
न्यायकन्दलीपञ्जिका ४. श्रीजयसिंहसूरि
न्याय-तात्पर्यदीपिका ५. श्रीशुभविजयगणि
तर्कभाषा-वार्तिक ६. श्रीगुणरत्नगणि
तर्क-तरङ्गिणी ७. श्रीजिनवर्धनाचार्य
जिनवर्धनी (सप्तपदार्थीटीका) ८. श्रीसिद्धिचन्द्रगणि
(१) सप्तपदा टीका (२) न्यायसिद्धान्तमञ्जरीटीका (३) मङ्गलवाद
उपरिनिर्दिष्ट ब्राह्मण, बौद्ध और जैन सम्प्रदाय के दार्शनिक साहित्य को देखने से यह पता चलता है कि इन तीनों परम्परा के अनुयायी दार्शनिक विद्वान् अपनी परम्परा या सम्प्रदाय के दार्शनिक ग्रन्थों का भी अभ्यास करते थे। स्मरण रहे कि तत्तत्सम्प्रदाय के दार्शनिक विद्वानों का इतर सम्प्रदाय के दार्शनिक सिद्धान्तों का यह अभ्यास प्रधानतः खण्डनात्मक दृष्टि से था । इस कारण ब्राह्मण सम्प्रदाय के पं. अर्चट, पं. दुर्बेकमिश्र तथा श्रीअभिनवगुप्ताचार्य जैसे थोडे से दार्शनिक विद्वानों को छोडकर अन्य दार्शनिक विद्वानों ने इतर सम्प्रदाय के दार्शनिक ग्रन्थो पर टीका टिप्पण आदि लिखे हो अथवा इतर सम्प्रदाय के दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपक कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखा हो ऐसा उपलब्ध साहित्य से प्रतीत नहीं होता है। यही कारण है कि इस समय कुछ अपवादों को छोड़कर ब्राह्मण सम्प्रदाय के किसी विद्वान् की बौद्ध या जैन सम्प्रदाय के किसी दार्शनिक ग्रन्थ पर टीका या टिप्पण आदि तथा बौद्ध सम्प्रदाय के विद्वान् की किसी ब्राह्मण या जैन दार्शनिक ग्रन्थ पर टीका