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________________ ४४ पोथी माटे सूचवेल छे । प्रारंभनां २ पत्र विनानी पत्र ३थी ९९ वाळी कागळो पर लखायेली ते पोथी बहु अशुद्ध होवाथी अने श्रीजिनविजयजी पासे त्यांथी मागणी आववाथी जल्दी पाछी मोकलावी आपी हती, एथी ते बहु उपयोगी थई नथी । [५] आ उपरान्त, धर्मोपदेशमालाना सं. ११९१मां विजयसिंहसूरिए रचेल विस्तृत प्राकृत कथाओवाळा १४४७१ श्लोकप्रमाणवाळा बीजा विवरणनी आधुनिक लखायेली अशुद्ध पोथीनो पण आमां प्रसंगानुसार उपयोग कर्यो छे, ते २९९ पत्रवाळी पोथी, वडोदरानी जैनज्ञानमंदिरनी, मुनिराज श्रीहंसविजयजीना शास्त्रसंग्रहनी नं. ६११ छे ।। [६] धर्मोपदेशमालानी मुनिदेवसूरिए सं. १३२४ लगभगमां रचेली संस्कृत कथावाळी त्रीजी वृत्तिनो पण आ संपादनमां प्रसंगानुसार उपयोग करवामां आव्यो छे । ग्रं. ७२२० सूचवेली ते पोथी, मुनिराज श्रीहंसविजयजीना उपदेशथी सं. १९६६मां पाटणमां लखायेली छे, स्थूल मनोहर लिपिमां परन्तु अशुद्ध लखाएली २४७ पत्रोवाळी आ पोथी पण उपर जणावेला तेमना संग्रहनी नं. ४९६ छे । आभार-प्रदर्शन क्रमांक १, २, ५, ६ पोथीओ लांबा समय सुधी उपयोग करवा आपवा माटे विद्वद्वर्य मुनिराज श्रीपुण्यविजयजीनो, अने मुनिराज रमणिकविजयजीनो, तथा क्रमांक ३, ४ पोथीओ माटे आचार्य श्रीजिनविजयजीनो, अने ते ते संस्थाना व्यवस्थापकोनो पण हुं अन्त:करणथी आभार मानू छु । उपर्युक्त ह. लि. प्रतियो उपरान्त आवश्यकसूत्र (जिनदासगणि महत्तरनी चूर्णि, हरिभद्रसूरिनी अने मलयगिरिनी वृत्ति साथे), तथा विशेषावश्यकभाष्य (मलधारी हेमचन्द्रसूरिनी वृत्ति साथे), नन्दीसूत्र (चूणि अने वृत्तियो साथे), उत्तराध्ययनसूत्र (चूणि अने वृत्तियो साथे), ज्ञाताध्ययन (वृत्ति साथे), धर्मदासगणिनी उपदेशमाला (सिद्धर्षि वगेरेनी वृत्तियो साथे), हरिभद्रसूरिनो उपदेशपद ग्रन्थ (वृत्तियो साथे) वगेरे सम्बन्ध धरावता प्रसिद्ध सिद्धान्तादि ग्रन्थोनो उपयोग पण में आ ग्रन्थना संशोधनमां, विशेष शुद्धि माटे, पाठान्तरादिनिरीक्षण माटे, कथानकोनी तुलना करवा माटे, तथा भाषारचनादिविचारणा माटे प्रसंगानुसार कर्यो छे, ते कृतज्ञताथी सहज जणायूँ छु । आचार्य श्रीजिनविजयजीए आ ग्रन्थना संशोधनमा धैर्य राखी पहेलेथी छेल्ले सुधी निरीक्षण कयुं छे, अने प्रसङ्गानुसार सूचनो कर्यां छे, तथा विद्वद्वर्य मुनिराज श्रीपुण्यविजयजीए, अने प्रसिद्ध पं. बेचरभाई आदिए आ ग्रन्थनो प्रकाशित केटलोक भाग अवकाश mala-t.pm5 2nd proof
SR No.009624
Book TitleDharmopadeshmala prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysinhsuri, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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