SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "माला उवएसाणं एयं जो पढइ भावइ ई (ई, उ) कंठे । सो पावइ निव्वाणं अचिरेण विमाणवासं च" ॥१०४॥ प्रो. कीलहॉर्नना रिपोर्ट (वॉ. २, नं. ३८२) वगेरेमां पण आ ग्रन्थ- सूचन छ । [जयसिंहाचार्यनो परिचय ।] धर्मोपदेशमाला जेवा ९८ गाथाना लघुप्रकरणग्रन्थ- ५७७८ श्लोकप्रमाण आQ उत्तम विशिष्ट विवरण रचतांजयसिंमार्ये पोतानी अनेकदेशीय प्रौढ विद्वत्तानो, बहुश्रुततानो परिचय कराव्यो छे, परन्तु तेओए पोतानां जन्म, विद्याध्ययन, दीक्षा आदिथी भारतना कया शुभ प्रदेशने विभूषित कर्यो हतो ? कया ज्ञातिवंशने अलंकृत करी यशस्वी को हतो ? कया कुलने कीर्तिशालि कर्यु हतुं ? कयां भाग्यशाली मात-पिताने धन्यवादनां पात्र कर्यां हतां ? ए वगेरे सम्बन्धमां तेओए आ ग्रन्थमां कोई निर्देश कर्यो नथी, एथी ए सम्बन्धी आपणी जिज्ञासा पूर्ण थई शकती नथी । संसारथी विरक्त नि:स्पृह जैनाचार्यो पोतानी पूर्वावस्था गृहस्थावस्थाने, अथवा पोताना त्याग करेला सांसारिक सम्बन्धोने स्मरणमां लावी प्रकाशित करवानुं प्रायः पसंद करता नथी । आ प्रौढ ग्रन्थकारे पण एवा कोई आशयथी पोतानो एवा प्रकारनो परिचय आपवो उचित नहि मान्यो होय-एवं अनुमान थाय छे । एमना कोई अनुयायी भक्त शिष्ये अन्यत्र तेवो परिचय कराव्यो होय तो ते साधन अमने उपलब्ध थयुं नथी । सन्तोषनी वात छे के आ ग्रन्थकारे श्रमणावस्था साथे सम्बन्ध धरावतो पोतानो आवश्यक ऐतिहासिक परिचय आ ग्रन्थना अन्तमां कराव्यो छे । आ ग्रन्थमां [पृ. .........मां] प्रसङ्गानुसार 'जय' शब्दोथी अलंकृत, 'जिनवरेन्द्रोनी स्तुतिरूप जयशब्दकुसुममाला' रची ग्रन्थकारे २४ तीर्थंकरो प्रत्ये पोतानो भक्ति-भाव प्रकट कर्यो छे। तथा ग्रन्थना अन्तमां ऋषभ वगेरे सर्व जिनेन्द्रोना गणधरो अने स्थविरो पढमाणुओग(प्रथमानुयोग)मां कहेला छे.' तेम सूचवी, एकैक गाथाद्वारा महावीरना समस्त शास्त्रार्थना पारगामी ११ गणधरोनो, देश, वंश, आयुष्य, मात-पितादि परिचय कराव्यो छे । ग्रन्थकारे उपर्युक्त तीर्थंकरावली अने गणधरावली जणाव्या पछी महावीरना तीर्थमां थई गयेला श्रतस्थविरोनी आवलीजाणवी छे । तेमां श्रुतरत्नना महासागर जेवा जम्बधी देववाचकसुधीमां थई गएला २४ श्रुतस्थविरोनुं स्मरण करी विनयथी तेमने नमन कर्यु छे, ते साथे वर्तमान कालमा विद्यमान अने भविष्य कालमा थनारा श्रुतस्थविरोने पण प्रणाम करतां ग्रन्थकारे पोतानी नम्रता-लघुता दर्शावी छ । प्रकारान्तरथी ते पूर्वजोना अनुयायी श्रुतस्थविर तरीके पोताने सूचित कर्या छ । ग्रन्थकारे अन्तमा ३१ गाथाओ द्वारा पोतानी गुरुपरम्परा दर्शावी, ग्रन्थरचना, समय, राज्यस्थलादि सम्बन्धि वक्तव्य कर्यु छे । mala-t.pm5 2nd proof
SR No.009624
Book TitleDharmopadeshmala prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysinhsuri, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy