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अन्य स्तुति-स्तोत्र आदि भी नहीं बोलना चाहिए। अग्रपूजा (धूप-दीप-अक्षत-नैवेद्य-फल आदि) करते समय मुखकोश बांधने की आवश्यकता नहीं है। प्रभजी के प्रति विनय का प्रदर्शन करते हुए आरतीमंगलदीप करनेवालों को सिर पर पगड़ी, टोपी तथा कन्धे पर दुपट्टा अवश्य रखना चाहिए। मूलनायक प्रभुजी के समक्ष आरती-मंगलदीपक उतारने के बाद घंटनाद करते हुए जिनालय में बिराजमान अन्य प्रभुजी के समक्ष भी आरती उतारना चाहिए । अन्त में उसे उचित स्थान पर जालीदार ढक्कन से ढंककर रखना चाहिए। दीपक-पूजा करनेवाले पुरुषों के साथ मात्र हाथ लगाकर महिलाओं को दाहिनी ओर से दीपक-पूजा नहीं करनी चाहिए। उसी तरह पुरुषो को भी नही करना चाहिए। मंदिर में दीपक-पूजा करते समय बोलने योग्य दोहे : (पुरुष'नमोऽर्हत्...'बोले) "द्रव्यदीपसुविवेकथी, करतांदुःख होय फोक। भाव प्रदीप प्रगट हुए,भासित लोकालोक..॥१॥" 'ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा.'
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