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________________ दीप-पूजा की विधि गाय के शुद्ध घी तथा स्वच्छ रूई से तैयार किया गया दीपक योग्य फानूस में रखना चाहिए। अशुद्ध वस्त्र धारण कर अथवा अपवित्र हाथों से तैयार किये गए दीपक तथा बोए का प्रयोग जहाँ तक हो सके, नहीं करना चाहिए। मंदिर में बारह मास जलनेवाले दीपक अथवा स्वद्रव्य से पूजा करनेवाले भाविकों के दीपक को चारों ओर तथा ऊपर-नीचे से बंद फानूस में जयणा पालन के हेतु से रखना चाहिए। जैनधर्म अहिंसा प्रधान है, अतः प्रभुजी की पूजा में अयोग्य विराधना से बचते हुए प्रभुजी की भक्ति करनी चाहिए। मंदिर के रंगमंडप तथा नृत्यमंडप में घी अथवा दीवेल का दीपक योग्य हांडी में ढंककर रखना चाहिए। कांच के ग्लास में स्वच्छ छाना हुए पानी तथा देशी रंग के साथ घी अथवा दीवेल का दीपक उचित स्थान पर ढंककर रखना चाहिए। मंदिर में विधिवत् स्थापित अखंड दीपक को अधिकृत
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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