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धूप-पूजा की विधि
• मालती - केशर-चंपा आदि उत्तम जाति की सुगन्धसे मिश्रित दशांगधूप प्रभुजी के समक्ष करना चाहिए ।
• सुगंधरहित अथवा जिसके जलाने से आँखें जलने लगे, ऐसे धूप का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
• मंदिर की धूपदानी में यदि धूप सुलग रहा हो तो दूसरा धूप नहीं सुलगाना चाहिए। यदि स्वद्रव्यवाला धूप हो तो उसे जलाया जा सकता है।
• स्वद्रव्य से धूपपूजा करने वाला धूपकाठी के छोटे-छोटे टुकड़े कर जलाने की बजाय यथाशक्ति बड़ी धूपकाठी जलानी चाहिए ।
• धूप प्रभुजी के नजदीक नहीं ले जाना चाहिए । थाली में धूपदीप आदि रखकर प्रभुजी की अंगपूजा ( = पक्षाल, केशर, पुष्पपूजा) नहीं करनी चाहिए।
• धूप जलाते समय उसका अग्रभाग घी में नहीं डुबाना चाहिए तथा धूपकाठी की लौ को फूँक से बुझानी नहीं चाहिए।
धूपपूजा करते समय उसी थाली में दीपक भी साथ नहीं रखना चाहिए। उसी प्रकार दीपपूजा मे भी ।
• पुरुषों को धूपपूजा प्रभुजी की बाई ओर तथा महिलाओं को भी बाईं ओर खड़े रखकर करनी चाहिए।
• धूपकाठी जलाने के बाद उसे प्रदक्षिणा के समान गोलाकार घुमाने के बजाय अपने हृदय के नजदीक रखकर धूम्रसेर को
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