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प्रभुजी से थोड़ी दूरी पर खड़े भाविकों के द्वारा सुमधुर स्वरों में गाए जाने योग्य दोहे:-(पुरुष पहले 'नमोऽर्हत्..' बोले) सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजे गत संताप। सुमजंतु भव्य ज परे, करीए समकित छाप॥१॥ 'ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय पुष्पाणि यजामहे स्वाहा' (२७ डंका बजाए) अर्थ :- जिनके संताप मात्र नष्ट हो गए हैं, ऐसे प्रभुजी की आप सुगन्धित अखंड पुष्पों से पूजा करो । प्रभुजी के स्पर्श से फूलों का जीव भव्यता को प्राप्त करता है, उसी प्रकार आप भी समकित की प्राप्ति करनेवाले बनो। यहाँ गर्भगृह के अन्दर प्रभुजी के बिल्कुल नजदीक में उतारने योग्य निर्माल्य से लेकरपुष्प पूजा तक की पूजा को अंगपूजा कही जाती है। उसमें सर्वथा मौन का पालन करना चाहिए
तथा दोहेआदि मन में ही गाना जरुरी है। • प्रभुजी से कम से कम साढे तीन हाथ दूर( अवग्रह) में रहकर
करने योग्य अग्रपूजा है। स्वद्रव्य से अष्ट-प्रकारी पूजा करनेवाले भाग्यशाली भी प्रभुजी से साढ़े तीन हाथ की दूरी पर रहकर ही अग्रपूजा करें।
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