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विलेपन करनेवाला भाग्यशाली मन में दुहा बोलते हुए तथा गर्भगृह के बाहर खड़े भाविक बोलें..(सिर्फ पुरुष 'नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व-साधुभ्यः'बोलें) 'शीतल गुण जेहमां रह्यो,शीतल प्रभु मुखरंग।
आत्म शीतल करवा भणी, पूजे अरिहा अंग..॥१॥' "ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय चंदनं यजामहे स्वाहा" (२७ डंका बजाएँ) अर्थ- जो प्रभुजी शीतल गुणों से युक्त हैं तथा जिनका मुख भी शीतल रंग से परिपूर्ण है, ऐसे श्री अरिहंत परमात्मा के अंग की अपनी आत्मा की शीतलता के लिए चंदन-कपूरआदिशीतल द्रव्यों से पूजा करें। विलेपन (चंदन ) पूजा पूर्ण होने के बाद अंगलुंछना के सिवाय अत्यन्त स्वच्छ वस्त्र (पक्के मलमल के कपड़े) से प्रभुजी के सर्व-अंग में विलेपन दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। विलेपन करने के बाद तुरन्त ही यदि किसी भाग्यशाली को सोने-चांदी के वरख से भव्य अंगरचना करने की भावना हो
तो विलेपन दूरकरने की आवश्यकता नहीं है। • विलेपन उतारने के लिए जिन वस्त्रों का उपयोग किया जाता
है, उसे उपयोग के बाद तुरन्त योग्य स्थान पर सूखने के लिए रख देना चाहिए। विलेपन वस्त्र को स्वच्छ पानी से धोने के बाद अंगलुंछना के साथ धोकर व सुखाकर रखना चाहिए।
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