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एणि परे जिन-पडिमा को न्हवण करी,
बोधि-बीज मानुं वावे ... हो ... अनुक्रमे गुण रत्नाकरफरसी,जिन उत्तम पद पावे...हो... (प्रक्षाल करनेवाले खुद ही 'सुरपति' बनकर जन्माभिषेक करते होने से अपने आप के लिए 'सुरपति आए' ऐसा संबोधन करे, यह उचित नही हैं। प्रक्षाल करते समय अपने कर्म मल इस से दूर हो रहे, ऐसी भावना जरुर भाए । अन्य भाग्यवान प्रक्षाल करनेवाले को 'सुरपति'का संबोधन कर सकते है।) निर्मल जल से अभिषेक करते समय करने वाले मन मे और गर्भगृह के बहार खडे महानुभाव उच्चारपूर्वक दुहा बोले.... (सिर्फ पुरुष पहले नमोऽर्हत्'बोलें) ज्ञानकलश भरी आतमा, समता रस भरपूर। श्री जिन ने नवरावतां, कर्म थाये चकचूर॥१॥ जल-पूजा जगते करो, मेल अनादि विनाश। जल-पूजा फल मुज होजो, मांगुएम प्रभु पास ॥२॥ ॐ ह्रीँ श्री परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजमहे स्वाहा॥ (२७ डंका बजाएँ)
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