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दश-त्रिक (दस प्रकार से तीन-तीन वस्तुओं का पालन) १. निसीही त्रिक : पहली निसीही - मंदिर के मुख्य दरवाजे में
प्रवेश करते समय संसार के त्यागस्वरूप। दूसरी निसीही- गर्भगृह में प्रवेश करते समय जिनालय से सम्बन्धित त्याग स्वरूप। तीसरी निसीही-चैत्यवन्दन प्रारम्भ करने से पूर्व द्रव्यपूजा के
त्यागस्वरूप। २. प्रदक्षिणा त्रिक : प्रभुजी के दर्शन-पूजन करने से पहले
सम्पूर्ण जिनालय को/मूलनायक भगवान को/ त्रिगडे में स्थापित भगवान को सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्राप्ति के लिए 'काल अनादि अनंत थी...'दोहा बोलते हुए तीन
प्रदक्षिणा देनी। ३. प्रणाम त्रिक
(१) अंजलिबद्ध प्रणाम : जिनालय के शिखर का दर्शन होते ही दोनों हाथों को जोड़कर मस्तक पर लगाना चाहिए। (२) अर्द्ध अवनत प्रणाम : गर्भद्वार के पास पहुँचते ही दोनों हाथों को जोड़कर मस्तक पर लगाकर आधा झुक जाना चाहिए।
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