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द्रव्य व भाव पूजा का क्रम बद्ध वर्णन
दूरी से जिनमंदिर की ध्वजा या कोई भी भाग देखते ही, उसके सन्मुख दृष्टि रखकर दो हाथ जोडकर'नमो जिणाणं' बोलना चाहिए। मुख व पैरो की शुद्धि करने के पश्चात् ही जिनमंदिर के प्रवेशद्वार में प्रवेश करना चाहिए। जिनमंदिर के परिसर में प्रवेश करते ही सांसारिक चिंता के त्याग स्वरुप प्रथम-निसीहि' बोलनी चाहिए। (निसीहि = निषेध)। फिर तिलक करके प्रवेश करें। गर्भगृह के बहार रंग मंडप में खडें रहकर प्रभुजी के दर्शन करहृदय में स्थापित करें। प्रभुजी के दाहिनी ओर से जयणा पालन पूर्वक 'काल अनादि अनंतथी....' दहा बोलते हुए तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए। उसका पश्चात् मूलनायक प्रभुजी समक्ष आते ही 'नमो जिणाणं' बोलकर मंदिर संबंधित चिंता के त्याग स्वरूप 'दूसरी निसीहि' बोलनी चाहिए। प्रभुजी के दाहिनी ओर भाईयों और बांई ओर बहनो को एक तरफ खडें रहकर भाववाही स्तुतियाँ अन्यों को अन्तरायभूत न बनें, वैसे एकी संख्या में बोलनी चाहिए। स्वद्रव्य से अग्र-पूजा करने की भावना वाले धूप व दीपक
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