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आवश्यक-क्रिया साधना
जैनशासन के समस्त आराधको की नित्य क्रम अनुसार होती क्रिया द्वारा साधना प्राणवंत बने और द्रव्यक्रिया-भाव क्रिया का कारण बने, इसलिये पुस्तक मे कुछ प्रयत्न किया गया है। उसमें सार्थ पंच प्रतिक्रमण सूत्र के साथ शुद्ध उच्चारण विधि, सचित्र सत्रह संडासा पूर्वक खमासमण, सूत्र की छंद पहेचान व गाने का तरीका, सूत्र अनुप्रेक्षा के साथ संपदा आदि ज्ञान, आवर्त विधियुक्त सचित्र मुहपत्ति पडिलेहण विवरण युक्त,सचित्र दशत्रिक के साथ जिनपूजा-विधि, योगमुद्रा आदि समझूति के साथ और पांचों प्रतिक्रमण की विधि हेतु व रहस्य के साथ बताए गए हैं। उसके अतिरिक्त ओर भी बहुत विषयो का समावेश किया गया हैं।
गुजराती प्रथम आवृत्ति की ५००० प्रतियाँ पंद्रह महीने मे समाप्त हो गई। अब गुजराती मे ओर उतनी ही प्रतियाँ
और हिंदी संस्कारण में ४००० प्रतियॉ अभी प्रकाशित हुई है। धार्मिक तथा व्यावहारीक प्रसंगो में जीवन उपयोगी यह साहित्य भेट प्रदान करने जैसा है।
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