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जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं - तारयाणं, बुद्धाणं-बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ॥ ८ ॥ सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिवमयल-मरुअ - मणंत - मक्खय - मव्वाबाह-मपुण-रावितिसिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणं ॥९॥ जे अ अईया सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ॥१०॥
• जावंति चेइआई सूत्र.
(ललाट प्रदेश मे हाथों को मोती इस तरह
की शीप की आकृति समान चैत्यवंदन करे।
करके मुक्तासुक्ति मुद्रा में यह
सूत्र बोले।) जावंति चेइआइं, उड्डे अ अहे अतिरिअ लोए ए। सव्वाइं ताइं वंदे, इह संतो तत्थ संताई ॥१॥ (एक खमासमण खडे होकर देना चाहिए।)
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