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जाना हुआ हो तो अवश्य ईरियावहियं करनी चाहिए। 'ईरियावहियं' की शुरुआत करने के बाद पच्चक्खाण न तो लेना चाहिए, न देना चाहिए तथा बीच में से खड़े होकर प्रक्षाल आदि द्रव्यपूजा करने के लिए भी नहीं जाना चाहिए। चैत्यवन्दन पूर्ण होने के बाद प्रभुजी को स्पर्श करने हेतु गर्भगृह आदि में नहीं जाना चाहिए। यदि चैत्यवन्दन करने के बाद प्रक्षाल आदि द्रव्यपूजा करने की अत्यन्त भावना हो तो प्रक्षाल आदि किए गए प्रभुजी को दूसरी बार पुनः अनुक्रम से अंग-अग्र-भाव पूजा करनी चाहिए। मन को स्थिर कर चैत्यवन्दन के सूत्र तथा अर्थ के ऊपर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा उसका चिन्तन करना चाहिए।
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