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(तत्त्वार्थ सूत्र ++******++++++++अध्याय
के मनुष्य सदा युवा रहते हैं। उन्हें कोई रोग नहीं होता और न मरते समय कोई वेदना ही होती है। बस पुरुष को जंभाई और स्त्री को छींक आती है और उसी से उनका मरण हो जाता है। मरण होने पर उनका शरीर कपूर की तरह उड़ जाता है । भोगभूमि में न पुण्य होता है और न पाप । हाँ, किन्ही किन्हीं को सम्यक्त्व अवश्य होता है। मरण होने पर सम्यग्दृष्टि तो सौधर्म या ईशान स्वर्ग में देव होते हैं और मिथ्यादृष्टि भवनत्रिक में जन्म लेते हैं। वहाँ के पशु भी मरकर देव होते हैं। उनमें परस्पर में ईर्षा द्वेष नहीं होता । सूर्य की गर्मी पृथ्वी तक न आ सकने के कारण वर्षा भी नहीं होती। कल्पवृक्षों के द्वारा प्राप्त वस्तुओं से ही मनुष्य अपना जीवन निर्वाह सानन्द करते हैं। वहाँ न कोई स्वामी है और न सेवक, न कोई राजा है और न प्रजा । प्राकृतिक साम्यवाद का सुख सभी भोगते हैं ॥ २९ ॥
अब उत्तर जम्बुद्वीप के क्षेत्रों की स्थिति बतलाते हैं
तथोत्तराः ||३०|
अर्थ- दक्षिण जम्बूद्वीप के क्षेत्रों की जैसी स्थिति है वैसी ही उत्तर जम्बूद्वीप के क्षेत्रों की जाननी चाहिये । अर्थात् हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों की स्थिति हैमवत क्षेत्र के मनुष्यों के समान है। रम्यक क्षेत्र के मनुष्यों की स्थिति हरिवर्ष क्षेत्र के मनुष्यों के समान है। और उत्तर कुरू के मनुष्यों की स्थिति देवकुरू के मनुष्यों के समान है ॥ ३० ॥
आगे विदेह क्षेत्र की स्थिति बतलाते है
विदेहेषु संख्येयकाला ||३१||
अर्थ - पाँचों मेरु सम्बन्धी पाँच विदेह क्षेत्रों में मनुष्यों की आयु संख्यात वर्ष की होती है।
विशेषार्थ - पाँचों विदेहों में सदा सुषमा-दुषमा काल की सी दशा रहती है। मनुष्यें के शरीर की ऊँचाई अधिक से अधिक पाँच सौ धनुष
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तत्त्वार्थ सूत्र +++++++++++अध्याय
होती है। प्रतिदिन भोजन करते हैं। उत्कृष्ट आयु एक कोटी पूर्व की है और जघन्य आयु अन्तर्मुहुर्त की है। पूर्वका प्रमाण इस प्रकार कहा है- चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वाङ्ग होता है और चौरासी लाख पूर्वांङ्ग का एक पूर्व होता है । अतः चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणा करने पर ७०५६०००००००००० संख्या आती है, इतने वर्षों का एक पूर्व होता है। ऐसे एक कोटिपूर्व की आयु कर्म भूमि में होती है ॥ ३१ ॥
आगे दूसरी तरह से भरत क्षेत्र का विस्तार बतलाते हैंभरतस्य विष्कम्भो जम्बुद्वीपस्य नवतिशतभागः ||३२||
अर्थ- जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है । उसमें एक सौ नब्बे का भाग देने पर एक भाग प्रमाण भरत क्षेत्र का विस्तार है। जो पहले बतलाया है।
विशेषार्थ - पहले भरत क्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस सही ६/ १९ योजन बतलाया है । सो जम्बूद्वीप के एक लाख योजन विस्तार का एक सौ नब्बेवाँ भाग है। क्यों कि जम्बूद्वीप सात क्षेत्रों और छह पर्वतों में बँटा हुआ है। उसमें भरत का एक भाग, हिमवान् के दो भाग, हैमवतके चार भाग, महाहिमवान् के आठ भाग, हरिवर्ष के सोलह भाग, निषध पर्वत के बत्तीस भाग, विदेहके चौसठभाग, नील पर्वत के बत्तीसभाग, रम्यक के सोलह भाग, रुक्मि पर्वत के आठ भाग, हैरण्यवत क्षेत्र के चार भाग, शिखरी पर्वत के दो भाग और ऐरावतका एक भाग है। इन सब भागों का जोड़ १९० होता है। इस तरह जम्बूद्वीप का वर्णन समाप्त हुआ। जम्बुद्वीप को घेरे हुए लवण समुद्र है उसका विस्तार सर्व ओर दो लाख योजन है। लवण समुद्र को घेरे हुए धातकी खण्ड नाम का द्वीप है। उसका विस्तार सब ओर चार लाख योजन है ॥ ३२ ॥
आगे धातकी खण्ड द्वीप की रचना बतलाते हैंद्विर्धातकीखण्डे ||३३|| ******74+++++
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