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तत्त्वार्थ सूत्र +++++++++++ अध्याय आगे इन तालाबों का विस्तार बतलाते हैंप्रथमो योजन सहस्त्रायामस्तद र्द्ध विष्कम्भो हृदः ||१७|| अर्थ - पहला पद्म नाम का ह्रद पूरब पश्चिम एक हजार योजन लम्बा है और उत्तर दक्षिण पाँच सौ योजन चौड़ा है ॥ १५ ॥
अब उसकी गहराई बतलाते हैं
दश-योजनावगाहः ||१६|| अर्थ - पद्म हृद की गहराई दश योजन है ॥ १६ ॥ आगे इसका विशेष चित्रण करते हैं
तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ||१७|| अर्थ - उस पद्म हृद मे एक योजन लम्बा चौड़ा कमल है। विशेषार्थ - यह कमल वनस्पतिकाय नहीं हैं किन्तु कमल के आकार की पृथ्वी है। उस कमलाकार पृथ्वी के बीच में दो कोस की कणिका है और उस कर्णिका के चारों ओर एक-एक कोस की पंखुरियाँ हैं। इससे उसकी लम्बाई चौड़ाई एक योजन है ॥१७॥
आगे के हदों और कमलों का विस्तार बतलाते हैं
तद्विगुण - द्विगुणा हदा: पुष्कराणि च ||१८||
अर्थ- आगे के ह्रद और कमल प्रथम हृद और कमल से दूने दूने परिमाण वाले हैं । अर्थात् पद्म ह्रद से दूना महापद्मह्रद है । महापद्म से दूना तिमिञ्छ ह्रद है। इन हृदों में जो कमल हैं वे भी दूने दूने परिमाण वाले हैं ॥१८॥
इन कमलो पर निवास करनेवाली देवियों का वर्णन करते हैंतन्निवासिन्यो देव्यः श्री-ही-धृति-कीर्ति - बुद्धि-लक्षम्य : पल्योपमस्थितयः ससामानिक परिषत्काः ||१९||
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तत्त्वार्थ सूत्र +++++अध्याय
अर्थ - उन कमलों की कर्णिका पर बने हुए महलों में निवास करनेवाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छह देवियाँ हैं । उनकी एक पल्य की आयु है। और वे सामानिक एवं परिषद् जाति के देवों के साथ रहती हैं। अर्थात् बड़े कमल के आस पास जो और कमलाकार टापू हैं उन पर बने हुए मकान में सामानिक और परिषद् जाति के देव बसते हैं ॥१९॥
अब उक्त क्षेत्र मे बहने वाली नदियों का हाल बतलाते हैंगंगा-सिन्धु, रोहिद्-रोहितास्या, हरिद् -हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी - नरकान्ता, सुवर्ण-रूप्यकूला,
रक्ता-रक्तोदा: - सरितस्तन्मध्यगाः ||२०||
अर्थ - उन सात क्षेत्रों के बीच से बहनेवाली गंगा-सिन्धु, रोहित्रोहितास्या, हरित्-हरिकान्ता, सीता - सीतोदा, नारी - नरकान्ता, सुवर्णकूला - रूप्यकूला, रक्ता-रक्तोदा ये चौदह नदियाँ हैं ॥२०॥
द्वयोर्द्वयोः पूर्वा: पूर्वगाः ||२१||
अर्थ - कम से एक एक क्षेत्र में दो दो नदियाँ बहती हैं। और उन दोदो नदियों में से पहली नदी पूर्व समुद्र को जाती है। अर्थात् गंगा, रोहित्, हरित्, सीता, नारी, सुवर्णकूला और रक्ता ये सात नदीयाँ पूरब के समुद्र मे जा कर मिलती हैं ॥ २१ ॥
शेषास्त्वपरगाः ||२२||
अर्थ- दो-दो नदियों में से पीछेवाली नदी पश्चिम समुद्र को जाती हैं। अर्थात् सिन्धु, रोहितास्या, हरिकांता, सीतोदा, नरकांता, रूप्यकूला और रक्तोदा, ये सात नदियाँ पश्चिम समुद्र में जा कर मिलती हैं ।
विशेषार्थ - छ: हृदों से चौदह नदियाँ निकली हैं। उनमें से पहले पद्म ह्रद और छठ्ठे पुण्डरीक ह्रद से तीन-तीन नदियाँ निकली हैं। और शेष चार
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