________________
DEVIPULIBO01.PM65 (45) (तत्त्वार्थ सूत्र * **** ***** अध्याय - हैं। यह प्रत्येक उपविभाग एक-एक स्वतन्त्र देश है। अतः विदेह क्षेत्र में ८x ४ = ३२ देश हैं, वे सब विदेह कहलाते हैं।
सुमेरु पर्वत एक लाख योजन उँचा है। जिसमें एक हजार योजन तो पृथ्वी के अन्दर उसकी नींव है और निन्यान्वे हजार योजन पृथ्वी के ऊपर उठा हुआ है। उसके चारों ओर पृथ्वी पर भद्रशाल नाम का वन है। उससे पाँचसौ योजन ऊपर जाने पर सुमेरु पर्वत के चारों ओर की कटनी पर दूसरा नन्दनवन है। नन्दनवन से साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर जा कर पर्वत के चारों ओर की कटनी पर तीसरा सौमनस वन है। सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊँचाई पर पर्वत का शिखर तल है। उसके बीच में चालीस योजन उँची चूलिका है और चूलिका के चारों ओर पाण्डुक वन है। इस वन में चारों दिशाओं में चार शिलाएँ हैं। उन शिलाओं पर पूर्व विदेह, पश्चिम विदेह, भरत और ऐरावत क्षेत्र मे जन्म लेने वाले तीर्थंकरों का जन्माभिषेक होता है ॥१०॥
आगे इन सात क्षेत्रों का विभाग करने वाले छह पर्वतों का कथन करते हैंतद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनील-रुक्मि-शिखरिणो वर्ष धरपर्वताः ||११।।
अर्थ- उन क्षेत्रों का विभाग करने वाले छ: पर्वत है जो पूर्व से पश्चिम तक लम्बे हैं । हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मि,
और शिखरी उनके नाम हैं। वर्ष अर्थात् क्षेत्रों के विभाग को बनाये रखने के कारण उसे वर्षधर' कहते हैं।
विशेषार्थ- भरत और हैमवत क्षेत्र के बीच में हिमवान पर्वत है जो सौ योजन ऊँचा है। हैमवत और हरिवर्ष के बीच में महाहिमवान् है जो दो सौ योजन ऊँचा है। हरिवर्ष और विदेह के बीच में निषध पर्वत है जो चार सौ योजन ऊँचा है। विदेह और रम्यक क्षेत्र के बीच में नील पर्वत है जो
(तत्त्वार्थ सूत्र
अध्याय :D चार सौ योजन ऊँचा है। रम्यक और हैरण्यवत के बीच में रुक्मि है जो दो सौ योजन ऊँचा है। और हैरण्यवत तथा ऐरावत के बीच में शिखरी पर्वत है जो सौ योजन ऊँचा है। ये सभी पर्वत पूरब समुद्र से लेकर पश्चिम समुद्र तक लम्बे हैं ॥११॥
आगे इन पर्वतों का रंग बतलाते हैं - हेमार्जुन-तपनीय-वैडूर्य-रजत-हेममया: ||१||
अर्थ- हिमवान पर्वत चीन देश की सिल्क की तरह पीतवर्ण है। महाहिमवान् चांदी की तरह सफेद है। निषध पर्वत तरुण सूर्य की तरह तपाये हुए सोने के समान रंगवाला है। नील पर्वत मोर के कण्ठ की तरह नीला है। रुक्मि पर्वत चांदी की तरह सफेद है और शिखरी पर्वत चीन देश की सिल्क की तरह पीतवर्ण है ॥१२॥
आगे इन पर्वतों का और भी विशेष वर्णन करते हैं - मणिविचित्रपार्वा उपरि मूले च तुल्यविस्तारा: ।।१३।।
अर्थ- इन पर्वतों के पार्श्व भाग (पखवाड़े); अनेक प्रकार की मणियों से खचित हैं। और मल,मध्य तथा ऊपर इनका विस्तार समान है। अर्थात् मूल से लेकर ऊपर तक एक सा विस्तार है ॥१३॥ आगे इन पर्वतों पर स्थित तालाबों का वर्णन करते हैं - पद्म-महापद्म-तिगिंछ-केसरि-महापुण्डरीक
पुण्डरीका हृदा स्तेषामुपरि ||१४|| अर्थ- उन पर्वतों के ऊपर पद्म , महापद्म , तिगिञ्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नाम के ह्रद हैं । अर्थात् हिमवान पर पद्म ,महाहिमवान पर महा पद्म, निषध पर तिगिञ्छ, नील पर केसरी , रुक्मि पर महापुण्डरीक और शिखरी पर पुण्डरीक हद हैं ॥१४॥