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तत्त्वार्थ सूत्र *************** अध्याय - क्षेत्र आदि की अपेक्षा से जुदे-जुदे मुक्त जीवों की संख्या को लेकर परस्पर में तुलना करना अल्प-बहुत्व है । सो बतलाते हैं
प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा से सब जीव सिद्धि क्षेत्र से ही मुक्ति प्राप्त करते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है। भूतप्रज्ञापन नयकी अपेक्षा जो किसी के द्वारा हरे जाकर मुक्त हुए, ऐसे जीव थोड़े हैं। उनसे संख्यात गुने जन्म सिद्ध हैं। तथा ऊर्ध्व लोक से मुक्त हुए जीव थोड़े हैं। उनसे असंख्यात गुने जीव अधोलोक से मुक्त हुए हैं और उनसे भी असंख्यात गुने जीव मध्यलोक से मुक्त हुए हैं। तथा समुद्र से मुक्त हुए जीव सबसे कम हैं। उनसे संख्यात गुने जीव द्वीप से मुक्त हुए हैं। यह तो हुआ सामान्य कथन । विशेष कथन की अपेक्षा लवण समुद्र से मुक्त हुए जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यात गुने जीव कालोदधि समुद्र से मुक्त हुए हैं। उनसे संख्यात गुने जम्बुद्वीप से मुक्त हुए हैं। उनसे संख्यातगुने धातकीखण्ड से मुक्त हुए हैं। उनसे संख्यातगुने पुष्करार्ध से मुक्त हुए हैं। यह क्षेत्र की अपेक्षा अल्पबहुत्व हुआ । काल की अपेक्षा-उत्सर्पिणी काल में मुक्त हुए जीव सबसे थोड़े हैं । अवसर्पिणी काल में मुक्त हुए जीव उनसे अधिक हैं। और बिना उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालमें मुक्त हुए जीव उनसे संख्यात गुने हैं; क्योंकि पांचों महाविदेहों में न उत्सर्पिणी काल है और न अवसर्पिणी काल है फिर भी वहाँ से जीव सदा मुक्त होते हैं। प्रत्युत्पन्न नय की अपेक्षा एक समय में ही मुक्ति होती है अतः अल्पबहुत्व नहीं है। गति की अपेक्षा-प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा तो अल्पबहुत्व नहीं है । भूतप्रज्ञापन नय से तिर्यञ्च गति से आकर मनुष्य हो, मुक्त गये जीव सबसे थोड़े हैं। मनुष्य गति से आकर मनुष्य हो मुक्त हुए जीव उनसे संख्यात गुने हैं । नरक गति से आकर मनुष्य हो मुक्त गये जीव उनसे संख्यात गुने हैं। और देवगति से आकर मनुष्य हो मुक्त हए जीव उनसे संख्यात गुने हैं । वेद की अपेक्षा-प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा तो वेद रहित जीव ही मुक्ति प्राप्त करते हैं। अत: अल्पबहुत्व नहीं हैं । भूतप्रज्ञापन नयकी अपेक्षा नपुंसक लिंग से श्रेणी चढ़कर मुक्त हुए जीव सबसे थोड़े हैं। स्त्री वेद से श्रेणी चढ़कर मुक्त हुए जीव उनसे संख्यात गुने हैं। और पुरुष वेद
(तत्त्वार्थ सूत्र ************** अध्याय - के उदय से श्रेणी चढ़कर मुक्त हुए जीव उनसे संख्यात गुने हैं । तीर्थकी अपेक्षा- तीर्थंकर होकर मुक्त हुए जीव थोड़े हैं । सामान्य केवली होकर मुक्त हुए जीव उनसे संख्यात गुने हैं । चारित्रकी अपेक्षा- प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा तो अल्पबहुत्व नहीं है। भूतग्राही नयकी अपेक्षा भी अव्यवहित चारित्र सबके यथाख्यात ही होता है, अत: अल्पबहुत्व नहीं है । अन्तर सहित चारित्र की अपेक्षा पाँचों चारित्र धारण करके मुक्त हुए जीव सबसे थोड़े हैं और चार चारित्र धारण करके मुक्त हुए जीव उनसे संख्यातगुने हैं। प्रत्येक बुद्ध थोड़े होते हैं । बोधित बुद्ध उनसे संख्यातगुने हैं। ज्ञान की अपेक्षा-प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा सब जीव केवल ज्ञान प्राप्त करके ही मुक्त होते हैं अतः अल्पबहत्व नहीं हैं। अवगाहना - जघन्य अवगाहना से मुक्त हए जीव थोडे हैं । भतग्राही नयकी अपेक्षा दो ज्ञान से मुक्त हुए जीव सबसे थोड़े हैं। चार ज्ञानसे मुक्त हुए जीव उनसे संख्यात गुने हैं। विशेषकथन की अपेक्षा मति, श्रुत और मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त करके मुक्त हुए जीव सबसे थोड़े हैं। मति, श्रुत ज्ञान प्राप्त करके मुक्त हुए जीव उनसे संख्यातगुने हैं । मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त करके मुक्त हुए जीव उनसे संख्यातगुने हैं । मति, श्रुत और अवधि ज्ञान प्राप्त करके मुक्त हुए जीव उनसे संख्यातगुने हैं। उत्कृष्ट अवगाहनासे मुक्त हुए जीव उनसे संख्यात गुने हैं। और मध्यम अवगाहना से मुक्त हुए जीव उनसे संख्यातगुने हैं। संख्या एक समय में एक सौ आठकी संख्या में मुक्त हुए जीव थोड़े हैं, एक समय में एक सौ सातसे लेकर पचास तक की संख्या में मुक्त हुए जीव उनसे अनन्त गुने हैं। एक समय में उनचास से लेकर पच्चीस तक की संख्या में मुक्त हुए जीव असंख्यात गुने हैं। एक समय में चौबीस से लेकर एक तक की संख्यामें मुक्त जीव उनसे संख्यात गुने हैं। इस प्रकार मुक्त हुए जीवों में वर्तमानकी अपेक्षा तो कोई भेद नहीं है। जो भेद है वह भूतपर्याय की अपेक्षा ही है।
इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रेदशमोऽध्यायः॥१०॥
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