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संपादकीय
सुबह जागने से लेकर सोने तक हर किसीका अविरत वाणी का व्यवहार चलता ही रहता है। अरे, नींद में भी कितने तो बड़बड़ाते रहते हैं!!! वाणी का व्यवहार दो प्रकार से परिणमित होता है। कड़वा या फिर मीठा! मीठा तो चाव से गले उतर जाता है, पर कड़वा गले नहीं उतरता! कड़वे-मीठे दोनों में समभाव रहे, दोनों ही समान प्रकार से उतर जाएँ, वैसी समझ ज्ञानी देते ही रहते हैं ! इस काल के अधीन व्यवहार में वाणी संबंधित तमाम स्पष्टीकरण परम पूज्य दादाश्री ने दिए हैं।
उन्हें लाखों प्रश्न पूछे गए हैं, सभी प्रकार के, स्थूलतम से लेकर सूक्ष्मतम तक के, टेढ़े-मेढ़े, सीधे-उल्टे तमाम प्रकार से पछे गए हैं, फिर भी उसी क्षण सटीक और संपूर्ण समाधानकारी उत्तर देते थे। आपश्री की वाणी में प्रेम, करुणा और सच्चाई का संगम छलकता हुआ दिखता है!
निवेदन परम पूज्य 'दादा भगवान' के प्रश्नोत्तरी सत्संग में पछे गये प्रश्न के उत्तर में उनके श्रीमुख से अध्यात्म तथा व्यवहार ज्ञान संबंधी जो वाणी निकली, उसको रिकॉर्ड करके, संकलन तथा संपादन करके पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया जाता हैं। उसी साक्षात सरस्वती का अद्भुत संकलन इस पुस्तक में हुआ है, जो हम सबके लिए वरदानरूप साबित होगी।
प्रस्तुत अनुवाद की वाक्य रचना हिन्दी व्याकरण के मापदण्ड पर शायद पूरी न उतरे, परन्तु पूज्य दादाश्री की गुजराती वाणी का शब्दश: हिन्दी अनुवाद करने का प्रयत्न किया गया है, ताकि वाचक को ऐसा अनुभव हो कि दादाजी की ही वाणी सुनी जा रही है। फिर भी दादाश्री के आत्मज्ञान का सही आशय, ज्यों का त्यों तो, आपको गुजराती भाषा में ही अवगत होगा। जिन्हें ज्ञान की गहराई में जाना हो, ज्ञान का सही मर्म समझना हो, वे इस हेतु गुजराती भाषा सीखें, ऐसा हमारा अनुरोध है। अनुवाद संबंधी कमियों के लिए आपसे क्षमाप्रार्थी हैं।
पाठकों से... * इस पुस्तक में मुद्रित पाठ्यसामग्री मूलत: गुजराती वाणी, व्यवहारमा...'
(संक्षिप्त) का हिन्दी अनुवाद है। इस पुस्तक में 'आत्मा' शब्द का प्रयोग संस्कृत और गुजराती भाषा
की तरह पुल्लिंग में किया गया है। * जहाँ-जहाँ पर 'चंदूलाल' नाम का प्रयोग किया गया है, वहाँ-वहाँ
पाठक स्वयं का नाम समझकर पठन करें। पुस्तक में अगर कोई बात आप समझ न पाएँ तो प्रत्यक्ष सत्संग में
पधारकर समाधान प्राप्त करें। * दादाश्री के श्रीमुख से निकले कुछ गजराती शब्द ज्यों के त्यों
'इटालिक्स' में रखे गये हैं, क्योंकि उन शब्दों के लिए हिन्दी में ऐसा कोई शब्द नहीं है, जो उसका पूर्ण अर्थ दे सके। हालाँकि उन शब्दों के समानार्थी शब्द () में अर्थ के रूप में दिये गये हैं। ऐसे सभी शब्द और शब्दार्थ पुस्तक के अंत में भी दिए गए हैं।
परम पूज्य दादाश्री हमेशा जो हो उसे प्रेम से कहते थे. 'पछो, पूछो, आपके तमाम खुलासे प्राप्त करके काम निकाल लो।' आपको समझ में नहीं आए तो बार-बार पूछो, पूर्ण समाधान न हो जाए तब तक अविरत पूछते ही रहो, बिना संकोच के! और आपको समझ में नहीं आए उसमें आपकी भूल नहीं है, समझानेवाले की अपूर्णता है, कमी है। हम यह कहकर आपका प्रश्न नहीं उड़ा सकते कि, 'यह बहुत सूक्ष्म बात है, आपको समझ में नहीं आएगी।' ऐसा करें, वह तो कपट किया कहलाएगा! खुद के पास जवाब नहीं हो, उसे फिर सामनेवाले की समझ की कमी बताकर उड़ा देता है! दादा को सुना हो या फिर उनकी वाणी पढी हो. सूक्ष्मता से उसे मन-वचन-काया की एकतावाले, कथनी के साथ करणीवाले दरअसल ज्ञानी की इमेज (प्रभाव) पडे बिना नहीं रहती! उसे फिर दूसरी और सभी जगहों पर नकली इमेज है, ऐसा भी लगे बिना नहीं रहता! प्रस्तुत 'वाणी, व्यवहार में...' पस्तक में वाणी से उत्पन्न होनेवाले टकराव और उसमें किस प्रकार समाधानकारी हल लाने चाहिए. वैसे ही खुद की कड़वी वाणी, आघाती वाणी हो, तो उसे किस प्रकार की समझ