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________________ ७२ वाणी, व्यवहार में... जीवन व्यतीत करते हैं। वे चोखे व्यक्ति कहलाते हैं। इसलिए वह अच्छा मनुष्य तो कैसा होना चाहिए कि उसकी वाणी मनोहर हो, अपने मन का हरण करे वैसी वाणी हो, उसका वर्तन मनोहर हो और विनय भी मनोहर हो। यह तो बोलता ऐसा है कि उस घड़ी कान हमें बंद कर देने पड़ते हैं ! वाणी बोले तो उल्टा वह चाय दे रहा हो तो भी नहीं दे। 'आपको नहीं दूंगा', कहेगा। वाणी में मधुरता आई कि गाड़ी चली। वह मधुर होते-होते अंतिम अवतार में इतनी मधुर हो जाएगी कि उसके साथ किसी 'फ्रूट' (फल) की तुलना नहीं की जा सकती, उतनी मीठासवाली होगी! और कितने तो बोलें तब ऐसा लगता है कि भैंस रंभा रही हो। यह भी वाणी है और तीर्थकर साहिबों की भी वाणी है!!! जिसकी वाणी से किसीको किंचित् मात्र भी दुःख नहीं होता, जिसके वर्तन से किसीको किंचित् मात्र भी दु:ख नहीं होता, जिसके मन में खराब भाव नहीं होते, वह शीलवान है। शीलवान के बिना वचनबल उत्पन्न नहीं वाणी, व्यवहार में... यह तो विज्ञान है। विज्ञान में कोई परिवर्तन नहीं होता और है फिर सैद्धांतिक। जो हर प्रकार से थोड़ा भी विरोधाभास किसी भी जगह पर कुछ भी नहीं होता और व्यवहार में फिट हो जाता है, निश्चय में फिट हो जाता है। सबमें फिट हो जाता है, सिर्फ लोगों को फिट नहीं होता। क्योंकि लोग लोकभाषा में है। लोकभाषा में और ज्ञानी की भाषा में बहुत फर्क होता है। ज्ञानी की भाषा कितनी अच्छी है, कुछ अड़चन ही नहीं न! ज्ञानी विस्तारपूर्वक सभी स्पष्टीकरण दें, तब हल आता है। अपना यह 'अक्रम विज्ञान' जगत में पता चले. तो लोगों का बहत काम निकाल देगा। क्योंकि ऐसा विज्ञान कभी निकला नहीं है। यह व्यवहार में, व्यवहार की गहराई में किसीने किसी प्रकार का ज्ञान रखा ही नहीं है। व्यवहार में कोई पडा ही नहीं। निश्चय की ही सब बातें की हैं। व्यवहार में निश्चय नहीं आया है। निश्चय निश्चय में रहा है और व्यवहार व्यवहार में रहा हुआ है। पर यह तो व्यवहार में निश्चय लाकर रखा है, अक्रम विज्ञान ने। और पूरा नया ही शास्त्र निर्मित किया है और वह साइन्टिफिक है वापिस । इसमें किसी जगह पर विरोधाभास नहीं हो सकता। पर अब यह 'अक्रम विज्ञान' प्रकाश में कैसे आए? प्रकाश में आए तो जगत् का कल्याण हो जाएगा! प्रश्नकर्ता : उसका संयोग भी आएगा न? दादाश्री : हाँ, आएगा न! जय सच्चिदानंद होता। जब खुद की वाणी खुद सुना करेगा तब मोक्ष होगा। हाँ, वाणी बंद होने से दिन नहीं बदलेंगे। वाणी बंद होने से मोक्ष नहीं होगा। क्योंकि ऐसे बंद करने गए, इसलिए फिर दूसरी शक्ति वापिस खड़ी हो गई। सभी शक्तियों को ऐसे ही चलने देना। प्राकृत शक्तियाँ हैं ये सारी । प्राकृत शक्तियों में हाथ डालने जैसा नहीं है। इसलिए कहते हैं न हमारी वाणी को कि यह टेपरिकॉर्डर बजता रहता है, जिसे हम देखा करते हैं। बस, यही मोक्ष ! इस टेपरिकॉर्ड को देखे, वह सब मोक्ष!! इसलिए हमें हर एक कार्य गलन होते समय शुद्धिकरण करके निकालने हैं और उसका निकाल करना। हाँ, समताभाव से निकाल करना है। समझे तो बात बहुत मुश्किल नहीं है और नहीं समझे तो उसका अंत नहीं आए ऐसा है।
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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