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________________ ६४ वाणी, व्यवहार में... बहीखाते लाकर फिर नोंध रखने लगें!!! बह समझती है कि ससुर दूसरे रुम में बैठे हैं। इसलिए बहू दूसरों के साथ बात करती है कि 'ससुर में ज़रा अक्कल कम है।' अब हम उस घड़ी वहाँ पर खड़े हों और वह हमारे सुनने में आए, तो अपने अंदर वह रोग घसा। तो वहाँ हमें क्या हिसाब निकालना चाहिए कि हम दूसरे रुम में बैठे होते तो क्या होता? तो कोई रोग खड़ा नहीं होता। इसलिए यहाँ आए उस भूल का रोग है! हम उस भूल को मिटा दें। आप ऐसा मानों न कि हम कहीं और बैठे थे और यह नहीं सुना, यानी कि उस भूल को मिटा दें। अपना बेटा बड़ा हो गया हो और सामना करे तो समझना कि यह अपना 'थर्मामीटर' है। यह आपमें धर्म कितना परिणमित हुआ है, उसके लिए 'थर्मामीटर' कहाँ से लाएँ? घर में 'थर्मामीटर' मिल जाए तो फिर बाहर से नहीं खरीदना पड़े! बेटा धौल मारे, तो भी कषाय उत्पन्न नहीं हों, तब जानना कि अब मोक्ष में जानेवाले हैं हम। दो-तीन धौल मारे तो भी कषाय उत्पन्न नहीं हो, यानी समझना कि यह बेटा ही अपना थर्मामीटर है। वैसा थर्मामीटर दूसरा लाएँ कहाँ से। दूसरा कोई मारेगा नहीं। इसलिए यह थर्मामीटर है अपना। यह तो नाटक है! नाटक में पत्नी-बच्चों को हमेशा के लिए खुद के बना दे तो क्या चलेगा? नाटक में बोलते हैं वैसे बोलने में हर्ज नहीं है कि, 'यह मेरा बड़ा बेटा शतायु हो।' पर सबकुछ सतही, सुपरफ्लुअस, नाटकीय। इन सबको सच्चा माना उसके ही प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। यदि सच्चा नहीं माना होता तो प्रतिक्रमण करने ही नहीं पड़ते। जहाँ सत्य माना गया वहाँ राग और द्वेष शुरू हो जाते हैं, और प्रतिक्रमण से ही मोक्ष है। ये 'दादा' दिखाते हैं, उस 'आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान' से मोक्ष है। एक बार एक व्यक्ति के साथ मेरा दिमाग़ जरा गरम हो गया था, रास्ते में मैं उसे डाँट रहा था। तो लोग तो मुझे टोकेंगे न कि यह बाज़ार वाणी, व्यवहार में... में आपको झगड़ा करना चाहिए? इसलिए मैं तो ठंडा हो गया कि क्या भूल हो गई? वह व्यक्ति टेढ़ा बोल रहा है और हम डाँट रहे हैं, उसमें तो क्या बड़ी भूल हो गई? फिर मैंने उसे कहा कि यह टेढा बोल रहा था इसलिए मुझे जरा डाँटना पड़ा। तब वे लोग बोले कि यह टेढ़ा बोले तो भी आपको डाँटना नहीं चाहिए। यह संडास बदबू मारे तो दरवाज़े को लातें मारते रहें तो वह संडास कब सुगंधीवाला होगा? उसमें किसका नुकसान हुआ? उसका स्वभाव ही बदबू देने का है। उस दिन मुझे ज्ञान नहीं हुआ था। उस भाई ने मुझे ऐसा कहा, तो मैंने तो कान पकड़े। मुझे बहुत अच्छा उदाहरण दिया कि संडास कब सुधरता है? ११. मज़ाक के जोखिम... प्रश्नकर्ता : वचनबल किस तरह से उत्पन्न होता है? दादाश्री : एक भी शब्द मज़ाक के लिए उपयोग नहीं किया हो, एक भी शब्द झूठे स्वार्थ या छीन लेने के लिए उपयोग नहीं किया हो, शब्द का दुरुपयोग नहीं किया हो, खुद का मान बढ़े उसके लिए वाणी नहीं बोले हों, तब वचनबल उत्पन्न होता है। प्रश्नकर्ता : खुद के मान के लिए और स्वार्थ के लिए ठीक है, पर मज़ाक करें, उसमें क्या हर्ज है? दादाश्री : मज़ाक करना तो बहुत गलत है। इसके बदले तो मान दो वह अच्छा ! मजाक तो भगवान का हुआ कहलाता है! आपको ऐसा लगता है कि यह गधे जैसा मनुष्य है, 'आफ्टर ऑल' वह क्या है, वह पता लगा लो!! आफ्टर ऑल वह तो भगवान ही है न! मुझे मज़ाक की बहुत आदत थी। मजाक यानी कैसा कि बहुत नुकसानदायक नहीं, पर सामनेवाले को मन में असर तो होता है न! अपनी बुद्धि अधिक बढ़ी हुई होती है, उसका दुरुपयोग किसमें होता है? कम बुद्धिवाले की मजाक करे उसमें ! यह जोखिम जब से मुझे समझ में आया, तब से मजाक करना बंद हो गया। मज़ाक तो किया जाता होगा? मजाक
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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