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वाणी, व्यवहार में...
जने से कहा था, 'बड़े होकर ये बच्चे तुझे मारेंगे। इसलिए पत्नी के साथ सीधा रहना!' वह तो बच्चे देखते रहते हैं उस घड़ी, उनका पैर नहीं पहुँचे न तब तक और पैर पहुँचे तब तो कमरे में डालकर मारेंगे। ऐसा हुआ भी है लोगों के साथ ! लड़के ने उस दिन से नियाणां (अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक वस्तु की कामना करना) ही किया होता है कि मैं बड़ा हो जाऊँगा तो बाप को मारूँगा ! मेरा सर्वस्व जाए पर यह कार्य होना चाहिए, वह नियाणां । यह भी समझने जैसा है न? !
प्रश्नकर्ता यानी कि सारा दोष बाप का ही है?
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दादाश्री : बाप का ही। दोष ही बाप का है। बाप में बाप होने की बरकत नहीं हो तब पत्नी सामना करती है। बाप में बरकत नहीं हो तब ही ऐसा होता है न! मार-पीटकर गाड़ी खींचता है। कब तक समाज के डर के मारे रहेंगे।
ये बच्चे दर्पण हैं। बच्चों पर से पता चलता है कि अपने में कितनी भूलें हैं !
प्रश्नकर्ता मौनव्रत ले लें तो कैसा? मौन धारण करें तो, बोलना ही नहीं।
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दादाश्री : वह मौन अपने हाथ की बात नहीं है न । मौन हो जाएँ तो अच्छी बात है।
प्रश्नकर्ता: व्यवहार में कोई गलत कर रहा हो तो उसे टोकना पड़ता है तो उससे उसे दुःख होता है। तो किस तरह से उसका निकाल करना चाहिए?
दादाश्री : टोकने में हर्ज नहीं है, पर हमें टोकना आना चाहिए न । कहना आना चाहिए न, क्या?
प्रश्नकर्ता: किस तरह?
दादाश्री : बेटे से कहें, 'तुझमें अक्कल नहीं है, गधा है।' ऐसा बोलें
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वाणी, व्यवहार में...
तो फिर क्या होगा! उसे भी अहंकार होता है या नहीं? आपको ही यदि आपका बॉस कहे कि, 'आपमें अक्कल नहीं है, गधे हो।' ऐसा कहे तो क्या होगा? नहीं कहना चाहिए ऐसा। टोकना आना चाहिए।
प्रश्नकर्ता: किस तरह टोकना चाहिए?
दादाश्री : उसे बैठाओ। फिर कहो, हम हिन्दुस्तान के लोग हैं, आर्य प्रजा है अपनी, हम कोई अनाड़ी नहीं है, और अपने से ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा-वैसा सब समझाकर कहें तब रास्ते पर आएगा। नहीं तो आप तो मारपीटकर लेफ्ट एन्ड राइट, लेफ्ट एन्ड राइट ले लेते हो, तो चलता होगा?
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प्रश्नकर्ता: यहाँ के बच्चे बहस बहुत करते हैं, आर्ग्युमेन्ट बहुत करते हैं। यह आप क्या लेक्चर दे रहो हो, कहते हैं?
दादाश्री बहस बहुत करते हैं। फिर भी प्रेम से सिखाओगे न तो बहस कम होती जाएगी। यह बहस आपका रिएक्शन है। आप अभी तक उन्हें दबाते रहे हैं न । वह उसके दिमाग़ में से जाता नहीं है, मिटता ही नहीं । इसलिए फिर वह बहस करता है। मेरे साथ एक भी बच्चा बहस नहीं करता। क्योंकि मैं सच्चे प्रेम से यह आप सबके साथ बातें कर रहा
हूँ।
हमारी आवाज़ सत्तावाली नहीं होती। यानी कि सत्ता नहीं होनी चाहिए। बेटे से आप कहो न तो सत्तावाली आवाज़ नहीं होनी चाहिए। इसलिए आप थोड़ा प्रयोग मेरे कहे अनुसार करो न ।
प्रश्नकर्ता क्या करें?
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दादाश्री : प्रेम से बुलाओ न।
प्रश्नकर्ता: वह जानता है कि मेरा उस पर प्रेम है।
दादाश्री : वैसा प्रेम काम का नहीं है। क्योंकि आप बोलते हो उस घड़ी फिर कलेक्टर की तरह बोलते हो। 'आप ऐसा करो, आपमें अक्कल