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त्रिमंत्र
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त्रिमंत्र
'ॐ नमः शिवाय' बोलते ही एक ओर शिव स्वरूप नज़र आये और दूसरी ओर हम बोलते जायें।
यह है परोक्ष भक्ति आप महादेवजी को भजते हैं। लेकिन महादेवजी आपके भीतर बैठे शुद्धात्मा को खत लिखते हैं, कि लीजिए, यह आपका माल आया है, यह मेरा नहीं है। इसका नाम परोक्ष भक्ति। ऐसे कृष्ण को भजें या चाहें किसी और को भजें, वह परोक्ष भक्ति होती है। इसलिए मूर्तियाँ नहीं होती तो क्या होता? उस सच्चे भगवान को भूल जाते और मूर्ति को भी भूल जाते, इसलिए उन लोगों ने जगह-जगह पर मूर्तियाँ रखवाईं। इसलिए महादेवजी का मंदिर आया कि दर्शन करने जायें। दिखने पर दर्शन होंगे न! दिखने पर याद आयेगा कि नहीं आयेगा?
और याद आने पर दर्शन करते हैं। इसलिए ये मूर्तियाँ रखी हैं। पर कुल मिलाकर यह सब आखिर तो भीतरवाले को पहचानने के लिए है।
सच्चिदानंद में समाये सभी मंत्र यह त्रिमंत्र है उसमें पहले जैनों का मंत्र है, बाद में वासुदेव का और शिव का मंत्र है। और यह सच्चिदानंद में तो हिन्दू, मुस्लिम, विदेशी सभी लोगों के मंत्र आ गये।
इसलिए इन सभी मंत्रों को साथ बोलें, ये मंत्र निष्पक्षपात रूप से बोलें तब भगवान हम पर खुश होते हैं। एक व्यक्ति का पक्ष लेने पर जैसे, 'ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय' अकेला बोला करें तो वे सभी खुश नहीं होते। इसमें तो सभी देव खुश होते हैं।
अर्थात् जो मत में पड़े हुए हों उसका काम नहीं है। मत में से बाहर निकले तब काम का है।
कैसे कैसे लोग हिन्दुस्तान में हैं अब भी! पूरा हिन्दुस्तान खलास नहीं हो गया है। यह हिन्दुस्तान पूरा खलास नहीं हो सकता। यह तो
मूलतः आर्यों की भूमि है। और जिस भूमि पर तीर्थंकरों का जन्म हुआ! अकेले तीर्थंकर नहीं, तिरसठ शलाका पुरुष जिस देश में जन्म लेते हैं, वह देश है यह!
बोलिए पहाड़ी आवाज़ में यह भीतर मन में 'नमो अरिहंताणं' और सबकुछ बोले मगर भीतर मन में और कुछ चलता हो, उलटा-पुलटा। इससे कोई परिणाम नहीं मिलता। इसलिए कहा था न कि एकांत में जाकर, ऊँची पहाड़ी आवाज़ में बोलिए। मैं तो ऊँची आवाज़ में नहीं बोलूँ तो चलेगा पर आपको ऊँची आवाज़ में बोलना चाहिए। हमारा तो मन ही अलग तरह का होता है न!
अब ऐसी एकांत जगह में जायें तो वहाँ पर यह त्रिमंत्र बोलना ऊँचे से। वहाँ नदी-नाले पर घूमने जायें तो वहाँ ऊँचे से बोलना, दिमाग में धम-धम हो ऐसे।
प्रश्नकर्ता : ऊँचे से बोलने पर जो विस्फोट होता है उसका असर सब जगह पहुँचता है। इसलिए यह ख्याल में आता है कि ऊँचे से बोलने का प्रयोजन क्या है!
दादाश्री : ऊँची आवाज़ में बोलने से फायदा बहुत ही है। क्योंकि जब तक ऊँची आवाज़ में नहीं बोलते, तब तक मनुष्य की सारी भीतरी मशीनरी (अंत:करण) बंद नहीं होती। यह बात प्रत्येक मनुष्य के लिए है। हमारी तो भीतरी मशीनरी बंद ही होती है। पर ये दूसरे लोग ऊँची आवाज़ में नहीं बोलें न, तो उनकी भीतरी मशीनरी बंद नहीं होगी। वहाँ तक एकत्व प्राप्त नहीं होता। इसलिए हम कहते हैं कि ऊँची आवाज़ में बोलना। क्योंकि ऊँची आवाज़ में बोलने पर फिर मन बंद हो गया, बुद्धि खलास हो गई और यदि आहिस्ता बोले न, तो मन भीतर चुन चुन करता हो, ऐसा होता है कि नहीं होता है?
प्रश्नकर्ता : होता है।