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त्रिमंत्र
त्रिमंत्र
दादाश्री : 'एसो पंच नमुक्कारो' से पीछे के चार वाक्य नहीं बोलें तो हर्ज नहीं। मंत्र तो पाँच ही हैं और पीछे के चार वाक्य तो उसका माहात्म्य समझाने के लिए लिखे हैं।
प्रश्नकर्ता : यह नव पद के हिसाब से नवकार मंत्र कहलाये?
दादाश्री : नहीं, नहीं, ऐसा नहीं। यह नव पद नहीं है। यह नमस्कार मंत्र है, उसके बदले नवकार हो गया। यह मूल शब्द नमस्कार मंत्र है, उसके बदले मागधि भाषा में नवकार बोलते हैं। इसलिए नमस्कार को ही यह नवकार कहते हैं। अर्थात् नव पद से इसका लेनादेना नहीं है। ये पाँच ही नमस्कार हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... प्रश्नकर्ता : फिर 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' समझाइए।
दादाश्री : वासुदेव भगवान! अर्थात् जो वासुदेव भगवान नर से नारायण हुए, उसको मैं नमस्कार करता हूँ। नारायण होने पर वासुदेव कहलाते हैं।
प्रश्नकर्ता : श्रीकृष्ण, महावीर स्वामी वे सभी क्या हैं?
दादाश्री : वे तो सारे भगवान हैं। वे देहधारी रूप में भगवान कहलाते हैं। वे भगवान क्यों कहलाते हैं कि भीतर संपूर्ण भगवान प्रकट हुए हैं। इसलिए हम उन्हें देह समेत भगवान कहते हैं।
और जो महावीर भगवान हुए, ऋषभदेव भगवान हुए वे पूर्ण भगवान कहलाते हैं। कृष्ण भगवान तो वासुदेव भगवान कहलाते हैं, उसमें कोई शक नहीं है न? वासुदेव यानी नारायण। नर में से जो नारायण हुए ऐसे भगवान प्रकट हुए थे। उसे हम भगवान कहते हैं।
वासुदेव की गिनती भगवान में होती है। शिव की गिनती भगवान में होती है और सच्चिदानंद वह भी भगवान में गिने जाते हैं। और ये पाँचो परमेष्टि भी भगवान में ही गिने जाते हैं। क्योंकि ये सच्चे साधक
होने से वे सारे भगवान में गिने जाते हैं। पर ये पंच परमेष्टि कार्य भगवान कहलाते हैं, जबकि वासुदेव तथा शिव कारण भगवान कहलाते हैं। वे कार्य भगवान होने के कारणों का सेवन करते हैं।
नर में से नारायण प्रश्नकर्ता : 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जरा विशेष रूप से स्पष्टीकरण कीजिए।
दादाश्री : यह श्रीकृष्ण भगवान वासुदेव हैं, वैसे ऋषभदेव भगवान के समय से लेकर आज तक नौ वासुदेव हो गये। वासुदेव यानी नर में से नारायण हो, उस पद को वासुदेव कहते हैं। तप-त्याग कुछ भी नहीं। उनको तो मारधाड़-झगड़े-तूफान सबकुछ उनके प्रतिपक्षी के साथ होता हैं। इसीलिए तो उनके प्रतिपक्षी के रूप में प्रतिवासुदेव जन्म लेते हैं। वे प्रतिनारायण कहलाते हैं। उन दोंनो के झगड़े होते रहते हैं।
और तब नौ बलदेव भी होते हैं। कृष्ण वासुदेव कहलाते हैं और बलराम (श्रीकृष्ण के बड़े भाई) वह बलदेव कहलाते हैं। भगवान रामचन्द्रजी वासुदेव नहीं कहलाते, रामचन्द्रजी बलदेव कहलाते हैं। लक्ष्मण वासुदेव कहलाते हैं और रावण प्रतिवासुदेव कहलाते हैं। रावण खास पूजा करने योग्य है। (रावण महान ज्ञानी और भगवान शिव के परम आराधक थे।) हमारे लोग रावण के पुतले जलाते हैं। भयंकर तरीके से जलाते हैं न! देखिए न! ऐसा उलटा ज्ञान जहाँ फैला हुआ है, उस देश का कैसे भला होगा? रावण के पुतले नहीं जलाने चाहिए।
इस काल के वासुदेव यानी कौन? कृष्ण भगवान । इसलिए यह नमस्कार कृष्ण भगवान को पहुँचते हैं। उनके जो शासनदेव होंगे, उनको पहुँचता है।
वासुदेव पद, अलौकिक वासुदेव तो कैसे होते हैं? एक आँख से ही लाखों लोग डर जायें ऐसी तो वासुदेव की आँख होती है। उनकी आँख देखकर ही