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टकराव टालिए
मत करना टकराव....
"किसीसे टकराव मत करना और टकाव टालना ।"
हमारे यह एक वाक्यका जो आराधन करेगा तो आखिर मोक्ष तक पहँचेगा । तेरी भक्ति और हमारी वचन शक्ति सारा काम कर देगी । सामने वालेकी तत्परता चाहिए । हमारे एक ही वाक्यका यदि कोई पालन करें तो वह मोक्षमें ही जायेगा । अरे, हमारा एक शब्द, "ज्यों का त्यों" पूरा का पूरा निगल जाये तो भी मोक्ष हस्तगत हो जाये ऐसा है । लेकिन उसे "ज्यों का त्यों" निगल जाना चाहिए ।
हमारे एक शब्दका एक दिन पालन करे तो गजबकी शक्ति उत्पन्न होगी ! भीतर इतनी शक्तियाँ भरी पडी है कि किसी भी तरहसे कोई टकराव आ जाये फिर भी उसे टाल सकें । जो जान-बूझकर गर्तामें घुसनेकी तैयारी है, उनके साथ टकराने बैढे रहना है ? वेतो कभी भी मोक्षमें नहीं जायेंगे उपरसे तुझे भी अपने साथ बिठाये रखेंगे । अबे, यह कैसे पुसार्यगा ? यदि तुझे मोक्षमें ही जानाहो तो जैसोके साथ ज्यादा लाल बझक्कड भी नहीं होना है । सभी औरसे चोतरका सावधान रहना, वर्ना यदि तुम्हें इस जंजालसे छूटना है तोभी संसार छूटने नहीं देगा । इसलिए घर्षण उत्पन्न किए बगैर "स्मघली" (हौलेसे) बाहर निकल जाना है । अरें, हम तो यहाँ तक कहते है कि यदि तेरी धोती झाँखरेमें फँस गई हो और तेरी मोक्षकी गाडी उढनेवाली हो तो मुआ धोती छूडाने मत बैठे रहना ! धोती
टकराव टालिए छोडके निकल भागना । अरे एक क्षण (2) भी किसी अवस्थामें चिपके रहने जैसा नहीं है । तब फिर और सभीकी तो बात ही क्या करें ? कही तू चिपका अर्थात तू स्वरूप को भूला ।
यदि भूलकर भी तू किसीके टकरावमें आ गया तो उसका फैसला कर डालना । हौले से उस टकराव में से बिना घर्षण किए निकल जाना ।
ट्राफिकके लॉसे टले टकराव ! जैसे हम यह रोड (रास्ते) पर देखभाल कर चलते है न ! फिर सामनेवाला मनुण्य कितना भी बुरा हो और हमसे टकरा जाये और हमारा नुकशान करे वह अलग बात है, लेकिन हमारा इरादा नुकशान पहुँचानेका नहीं होना चाहिए । हम उसे नुकशान पहुँचाने जायें तोवह हमाराही नुकशान होनेवाला है । अर्थात प्रत्येक टकरावमें सदैव दोनोंका नुकशान होता है
अप सामनेवालेको दुःख पहुँचायेंगे तो साथ-साथ वैसे ही ओन धी मोमेन्ट (उसी क्षण) आपको भी दुःख पहुँचे बगैर नहीं रहेगा । ये टकराव है इसलिए मैंने यह उदाहरण दिया है कि मार्ग यातायातका धर्मका क्या है कि टकराओगे तो मर जाओगे, टकरानेमें जोखिम है । इसलिए किसीके साथ टकराना मत । इसी प्रकार व्यावहारिक कार्योमें भी टकराना नहीं । टकरानेमें जोखिम ही है सदैव । और टकरानेका कभी-कभी होता हा । महिनेमें थोडे दो सौ वक्त होता है ? मनिहनेमें कितनी बार होता होगा ऐसा ?
प्रश्नकर्ता : कोई दफ़ा! दो-चार बार ।
दादाश्री : हाँ, तो उतना सुधार लें हम! मैं क्या कहना चाहता हूँ किस लिए बिगाडें हम ? अवसरोंको बिगाड़ना हमें शोभा नहीं देता । ये सभी ट्राफिकके लॉझ (यातायात के नियम) हैं, उन लॉझ (नियमों) के आधार पर चलता है, उसमें अपनी समझसे कोई नहीं चलता न ? और इसमें अपनी समझसे ही । कानून नहीं। उस ट्राफिक में कभी भी बाधा नहीं आती, वह कैसा सुछारु रुपसे व्यवस्थित चलता है । अब (3) इन कानूनोंको आप समझकर चलें तो फिर कोई बाधा नहीं होगी । अर्थात इन