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टकराव टालिए पश्चयात टकराव नहीं हुआ है । क्योंकि हमारा ज्ञान अनुभव ज्ञान है और हम निकाला करके आये है, इस ज्ञानसे । सभी निकाला कर-करके आये है और आपको निकाला करना बाक़ी है ।
दोष घुलें प्रतिक्रमण से ! किसीसे टकरावमें आने पर उसके दोष दिखने लगे और टकरावमें आने पर दोष ढंके रहे । पाँचसौ-पाँचसो दोष प्रतिदिन दिखने लगे तो समझना कि पूर्णाहुति नज़दीक आ रही है ।
इसलिए जैसे भी हो टकराव टालिए । यह टकराव करके इस लोकका बिगाड़ते है, पर परलोकका भी बिगाड़ते है । जो इस लोकका बिगाड़ते है वे परलोकका बिगाडे बगैर नहीं रहेंगे । जिसका यह लोक सुधरेगा, उसका परलोक सुधरेगा । इस भवमें यदि हमें किसी तरहकी अड़चन नहीं आई हो तो समझना कि परभवमें भी अड़चन नहीं आयेगी । और यहाँ पर अड़चने खड़ी की तो वे सभी वहाँ आनेवाली ही है।
तीन अवतारकी गारन्टी ! जिसे टकराव नहीं होगा, उसका तीन अवतार के बाद मोक्ष होगा उसकी मैं गारन्टी देता हूँ । टकराव हो जाने पर प्रतिक्रमण कर लेना । टकराव पुद्गलका है और पुद्गल से पुद्गलके टकरावका प्रतिक्रमणसे नाश होता है।
वह भाग करता हो तो हमें गुणा करना चाहिए ताकि रकम उड़ जाये । सामनेवाले मनुष्यके बारेमें सोचना कि, "उसने मझे ऐसा कहा, वैसा कहा ।" यही गुनाह है । यहाँ रास्तेमें जाते समय दीवार टकराने पर उससे क्यों नहीं लड़ते ? पेड़को जड़ कैसे कहेंगे? जो लगते है व सभी हरे पेड़ ही है । गायका पैर हम पर पड़े तब हम कुछ कहते हैं ? ऐसा इन सब लोगोका है । "ज्ञानी पुरुष"सभीको किस प्रकार क्षमा करे ? वे समझें कि ये बेचारे समझते नहीं है, भीतर ही भीतर तुरन्त प्रतिक्रमण कर लेंगे ।
टकराव टालिए आसक्ति वहाँ रिएक्शन (प्रतिक्रिया) ही! प्रश्नकर्ता : पर कोई बार हमें द्वेष नहीं करना हो फिरभी द्वेष हो जाता है, उसका क्या कारन ?
दादाश्री : किसके साथ ? प्रश्नकर्ता : कोई बार पतिके साथ ऐसा हो जाये तो ?
दादाश्री : यह द्वेष नहीं कहलाता । जो असक्तिका प्रेम है वह सदैव रिएक्सनरी (प्रत्याधाती) होता है । इसलिए यदि चिढ़ गये तो फिर उलटा चलेंगे, इससे कुछ समय अलग रहेंगे कि फिर प्रेमका उफान आयेगा । फिर प्रेममें चोट आने पर टकराव होगा । इससे फिर प्रेम बढ़ेगा । जहाँ मयाँदासे अधिक प्रेम होगा वहाँ बखेड़ा होगा । अर्थात जहाँ भी बखेड़ा होता रहता हो वहाँ भीतर से प्रेम होता है इन लोगोंको । वह तो प्रेम होने पर ही बखेड़ा होगा । पूर्वजन्मका प्रेम है, तो बखेड़ा होता है । जरूरतसे ज्यादा प्रेम है वर्ना बखेड़ा होता ही नहीं न ! इस बखेडे का स्वरूप ही वह है ।
उसे लोग क्या कहते है ?"टकरावकी वजहसे ही हमारा प्रेम होता है।" तब बात भी सही है । वह आसक्ति टकरावकी वजहसे ही हई है। जहाँ टकराव कम वहाँ आसक्ति नहीं होती है । जिस घरमें स्त्री-पुरुषके बीच टकराव कम होगा वहाँ आसक्ति कम है ऐसा समझ लेना । बात समझमें आती है ?
प्रश्नकर्ता : संसार व्यवहार में कभी-कभी जो अहम् रहता है उसकी वजहसे बहुत झरती है।
दादाश्री : वेह अहम्की चकमक़ नहीं झरती । दिखने में वह अहम्की चकमक़ लगती है मगर विषयके अधीने होने से वह होती है । विषय नहीं होने पर वह नहीं होती । विषय समाप्त होने पर वह ईतिहास ही समाप्त हो जायेगा । इसलिए अगर साल भरके लिए यदि ब्रह्मचर्य व्रत धारण करे, तो