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सेवा-परोपकार
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सेवा-परोपकार
यह आप व्यापार-धंधा करते हो, तब कुछ कमाते हों, तो किसी गाँव में कोई दुखी हो तो उसे थोड़ा अनाज-पानी दे दें, बेटी ब्याहते समय कुछ रकम दे दें। ऐसे उसकी गाड़ी राह पर ला देनी चाहिए न! किसी के दिल को ठंडक पहुँचाएँ, तो भगवान हमारे दिल को ठंडक देगा।
ज्ञानी दें, गारन्टी लेख प्रश्नकर्ता : दिल को ठंडक पहुँचाने जाएँ तो आज जेब कट जाती
दादाश्री : जेब भले ही कट जाए। वह पिछला हिसाब होगा जो चुक रहा है। पर आप अभी ठंडक देंगे तो उसका फल तो आएगा ही, उसकी सौ प्रतिशत गारन्टी लेख भी कर दूं। यह हमने दिया होगा, इसलिए हमें आज सुख आता है। मेरा धंधा ही यह है कि सुख की दुकान खोलनी। हमें दुःख की दुकान नहीं खोलनी। सुख की दुकान, फिर जिसे चाहिए वह सख ले जाए और कोई दुःख देने आए तो हम कहें, 'ओहोहो, अभी बाकी है मेरा। लाओ. लाओ। उसे हम एक और रख छोड़ें। अर्थात् दुःख देने आएँ तो ले लें। हमारा हिसाब है, तो देने तो आएँगे न? नहीं तो मुझे तो कोई दु:ख देने आता नहीं है।
इसलिए सुख की दुकान ऐसी खोलो कि बस सभी को सुख देना। दुःख किसी को देना नहीं और दु:ख देनेवाले को तो किसी दिन कोई चाकू मार देता है न? वह राह देखकर बैठा होता है। यह जो बैर की वसूली करते हैं न, वे यों ही बैर वसूल नहीं करते। दुःख का बदला लेते हैं।
सेवा करें तो सेवा मिलती है इस दुनिया में सर्व प्रथम सेवा करने योग्य साधन हों, तो वे हैं माँ-बाप।
माँ-बाप की सेवा करें, तो शांति जाती नहीं है। पर आज सच्चे दिल से माँ-बाप की सेवा नहीं करते हैं। तीस साल का हुआ और 'गुरु' (पत्नी) आए। वे कहते हैं कि मुझे नये घर में ले जाओ। गरु देखें हैं आपने? पच्चीसवें. तीसवें साल में 'गुरु' मिल आते हैं और 'गुरु' मिले, तो बदल जाता है। गुरु कहें कि माताजी को आप पहचानते ही नहीं। वह एक बार नहीं सुनता। पहली बार तो नहीं सुनता पर दो-तीन बार कहे, तो फिर पटरी बदल लेता है।
बाकी, माँ-बाप की शुद्ध सेवा करे न, उसे अशांति होती नहीं ऐसा यह जगत् है। यह जगत् कुछ निकाल फेंकने जैसा नहीं है। तब लोग पूछते हैं न, लड़कों का ही दोष न, लड़के सेवा नहीं करते माँ-बाप की। उसमें माँ-बाप का क्या दोष? मैंने कहा कि उन्होंने माँ-बाप की सेवा नहीं की थी, इसलिए उन्हें प्राप्त नहीं होती। अर्थात् यह विरासत ही गलत है। अब नये सिरे से विरासत के रूप में चले तो अच्छा होगा।
इसलिए मैं ऐसा करवाता हूँ, हर एक घर में। लड़के सभी ऑलराइट हो गए है। माँ-बाप भी ऑलराइट और लड़के भी ऑलराइट !
बुजुर्गों की सेवा करने से अपना यह विज्ञान विकसित होता है। कहीं मूर्तियों की सेवा होती है? मूर्तियों के क्या पैर दुखते हैं? सेवा तो अभिभावक हों, बुजुर्ग या गुरु हों, उनकी करनी होती है।
सेवा का तिरस्कार करके, धर्म करते हैं? ____ माँ-बाप की सेवा करना वह धर्म है। वह तो चाहे कैसे भी हिसाब हो, पर यह सेवा करना हमारा धर्म है और जितना हमारे धर्म का पालन करेंगे, उतना सुख हमें उत्पन्न होगा। बुजुर्गों की सेवा तो होती है, साथसाथ सुख भी उत्पन्न होता है। माँ-बाप को सुख दें. तो हमें सुख उत्पन्न होता है। माँ-बाप को सुखी करें, वे लोग सदैव, कभी भी दुखी होते ही नहीं है।