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________________ ३५ सत्य-असत्य के रहस्य लगी तो हम समझ जाते हैं कि इस गधे की पूँछ मैंने पकड़ी हुई है। सत्य की पूँछ नहीं पकड़नी है। सत्य की पूँछ पकड़ी, वह असत्य है। यह पकड़कर रखना, वह सत्य ही नहीं है। छोड़ देना, वह सत्य है! चाचा कहते हों, 'क्या फूटा?' तो हमें ज़रा झूठ बोलकर ऐसे समझाना आना चाहिए कि 'भाई, पड़ोसवाले के वहाँ कुछ फूट गया लगता है।' तो चाचा कहेंगे, 'हाँ, तब कोई हर्ज नहीं।' इसलिए वहाँ झूठ बोलें तो भी हर्ज नहीं है। क्योंकि वहाँ सच बोलेंगे तो चाचा कषाय करेंगे, यानी वे बहुत नुकसान उठाएँगे न! इसलिए वहाँ 'सच' की पूँछ पकड़कर रखने जैसा नहीं है। और सच की पूंछ पकड़े, उसे ही भगवान ने 'असत्य' कहा है। 'वह' सत्य किस काम का? बाक़ी, सच्चा-झूठा वह तो एक लाइन ऑफ डिमार्केशन है, नहीं कि वास्तव में वैसा ही है। 'सत्य की यदि पूँछ पकड़ोगे तो असत्य कहलाएगा', तब वे भगवान कैसे थे?! कहनेवाले कैसे थे?! 'हे साहेब. सत्य को भी असत्य कहते हो?' 'हाँ, पूँछ क्यों पकड़ी?' सामनेवाला कहे कि 'नहीं, ऐसा ही है।' तो हमें छोड़ देना चाहिए। यह झूठ बोलना सिर्फ हमने ही सिखलाया है, इस दुनिया में दूसरे किसीने सिखलाया नहीं है। परन्तु उसका यदि दुरुपयोग करे तो जिम्मेदारी उसकी खुद की। बाक़ी, हम तो इसमें से छटक जाने का मार्ग दिखलाते हैं पर उसका दुरुपयोग करे तो उसकी जोखिमदारी। यह तो छटकने का मार्ग दिखाते हैं कि भाई, इन चाचा को कषाय नहीं हो उसके लिए ऐसा करना। नहीं तो उन चाचा को कषाय हो इसलिए आपसे कषाय करेंगे। 'तू बिना अक्कल का है। बहू को कुछ कहता नहीं है। वो बच्चे का ध्यान नहीं रखती है। ये प्याले सारे फोड़ देती है। इसलिए ऐसा सब होता है, और सुलगता है फिर! यानी कषाय हुए कि सब सुलगता रहता है। उसके बदले सुलगते ही टोकरी से ढंक देना चाहिए! वह तो सारा हल आ जाता है। पर यह झूठ और सच ऐसा शब्द ३६ सत्य-असत्य के रहस्य ही नहीं होता है। वह तो डिमार्केशन लाइन है। व्यवहार 'ड्रामा' से छूटता है व्यवहार मतलब क्या? दोनों को आमने-सामने संतोष होना चाहिए। व्यवहार से तो रहना पड़ेगा न? बहुत ऊँचे प्रकार का सुंदर व्यवहार आए तब 'शुद्ध उपयोग' रहता है। प्रश्नकर्ता : व्यवहार ऊँचा रखना हो तो क्या करना चाहिए? दादाश्री: भावना रखनी चाहिए। लोगों का व्यवहार देखो. हमारा व्यवहार देखो। देखने से सब आ जाएगा। व्यवहार मतलब सामनेवाले को संतोष देना वह। व्यवहार को 'कट ऑफ' नहीं कर सकते। वह तो आत्महत्या की कहलाएगी। व्यवहार तो धीरे-धीरे खतम होना चाहिए। यह विनाशी सत्य है, इसलिए छोड़ नहीं देना है। यह तो बेसिक अरेन्जमेन्ट है एक प्रकार का। इसलिए शादी भी करना, मेरी वाइफ है ऐसा भी कहना, वाइफ को ऐसा भी कहना कि, 'तेरे बिना मुझे अच्छा नहीं लगता।' वह तो कहना ही पड़ता है। ऐसा नहीं कहे तो गाड़ी किस तरह चले? हम भी अभी तक हीराबा से ऐसा कहते हैं कि, 'आप हो तब अच्छा लगता है। पर हमसे यहाँ रहा नहीं जा सकता न, अब!' प्रश्नकर्ता : नि:स्वार्थ कपट! दादाश्री : हाँ, नि:स्वार्थ कपट! उसे ड्रामा कहा जाता है। दिस इज़ डामेटिक! इसलिए यह हम भी सारा अभिनय करते हैं आपके साथ। हम जो दिखते हैं न, जो बातें करते हैं, उस रूप हम नहीं हैं। यह तो सब आपके साथ अभिनय करते हैं, नाटक-ड्रामा करते हैं। मतलब व्यवहार सत्य किसे कहा जाता है? कि किसी जीव को नुकसान नहीं हो उस तरह से चीजें ले. चीजें ग्रहण करे, किसी जीव को दुःख नहीं हो वैसी वाणी बोले, किसी जीव को दु:ख नहीं हो वैसा वर्तन हो वह मूल सत्य है, व्यवहार का मूल सत्य यह है। इसलिए किसीको दुःख नहीं हो वह सबसे बड़ा सिद्धांत है। वाणी से दुःख नहीं हो, वर्तन
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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